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कभी श्रृंगार करते समय आपके मन में प्रश्न उठा है कि सोलह श्रृंगार के पीछे के वैज्ञानिक कारण क्या है ? 

अगर हां, तो आज मैं इस ब्लॉग में लेकर आई हूँ सोलह श्रृंगार के फायदे। 

सोलह श्रृंगार के पीछे के वैज्ञानिक कारण

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सोलह श्रृंगार के पीछे के वैज्ञानिक कारण | पुरानी परंपरा के गूढ़ रहस्य 

अक्सर तैयार होते समय मेरे मन में कौतूहल होता था कि आखिर महिलाएं श्रृंगार क्यों करती हैं।  

आइये इस ब्लॉग में एक एक कर जानने का प्रयास करें, सोलह सिंगार का क्या महत्त्व है ? 

 

1.

दन्त मंजन 

दन्त मंजन नित्य क्रिया भी है और श्रृंगार भी। आखिर भद्दे दांतों के संग कौन तैयार होता है। प्राचीन समय में नीम की दातुन प्रयोग होता था। वह दांत चमकाती थी। नीम का रस पेट और मुँह के कीटाणु भी मारता था।   

 

उबटन

स्नान से पहले उबटन लगाना श्रृंगार का हिस्सा है। यह शरीर से मृत कोशिका (dead skin) हटाता है। यहाँ विषय खूबसूरती का नहीं है बल्कि मुख्य इंद्री (sense organ – skin) का है।  

Dead skin पसीने में निकली शरीर की गंदगी को सोख लेती है। इस कारण दाने/मुंहासे भी हो सकते है। इस तरह उबटन यह हटाकर सिर्फ श्रृंगार नहीं बल्कि उपचार भी करता है। 

 

3.

मज्जन (स्नान) 

मज्जन अर्थात स्नान भी नित्य क्रिया है। सनातन में प्रतिदिन खुद को साफ़ रख शरीर को बीमारियों से बचाना भी श्रृंगार है।  

शुद्ध जल से स्नान करने पर हमारा शरीर और मस्तिष्क दोनों ही स्वच्छ एवं तरोताज़ा महसूस कर प्रफुल्लित होते हैं।  

 

4.

सुहाग जोड़ा  

श्रृंगार का अगला चरण है सुहाग का लाल जोड़ा। सुहाग का जोड़ा तो ठीक पर लाल ही क्यों? लाल रंग के अगर हम psychological analysis सुनेंगे तो पाएंगे कि लाल रंग color spectrum में सबसे strong color है।  

Color Therapy भी कहती है कि लाल रंग में सर्वाधिक उत्तेजित करने की क्षमता होती है। यही कारण है कि यह प्रेम का रंग है।   

 

5.

केशविन्यास

केशविन्यास का अर्थ है बालों में तेल लगाकर उनमें कंघी कर संवारना। इसके पश्चात् उन्हें चोटी या जूड़े में बांधना। तेल बालों को पोषण देता है। कंघी उलझे बाल सुलझाती है और सिर में रक्त संचार बढ़ाती है। 

इससे मृत कोशिका बाहर निकल जाती हैं और बाल स्वस्थ लगते हैं। इसके अलावा हमारे सिर पर बालों के मध्य चीर के बीच ऐसा pressure point होता है जिसपर कंघी का दबाव शांति का एहसास कराता है। 

 

6.

केश में फूल या गजरा 

जब बालों को चोटी या जूड़े में बांधकर उनमें विभिन्न आभूषण लगाकर सुन्दर बनाया जा सकता है फिर उनमें फूल ही क्यों लगाने हैं? क्यूंकि फूलों की खुशबू मन को खुश कर देती है। 

गज़रा अक्सर मोगरे या चमेली के फूलों का बना होता है। इनकी खुशबू तनाव को दूर कर शरीर में mood booster तरल का रिसाव करती है। इसमें कीट पतंगों को भी दूर रखने की क्षमता होती है।  

 

7.

मेहंदी और महावर 

मेहँदी ठंडक का एहसास देती है साथ ही यह तनाव भी कम करती है। महावर कच्चे लाख को पीसकर पान के पत्ते के संग पानी में पकाकर बनाया जाता है। इसकी तासीर ठंडी होती है और इसमें antibacterial गुण होते हैं। कच्चे घरों में स्त्रियां जब बिन जूते चप्पल खेतों और घर में काम करती थी तब यह पैरों में बिवाई पड़ने से बचाता था। साथ ही मिट्टी के बैक्टीरिया से भी बचाता था। 

 

8.

आभूषण 

आभूषण भारतीय स्त्री के ही नहीं अपितु पुरुषों के भी हमेशा से विशिष्ट अलंकार रहे हैं। स्वर्ण या चांदी के आभूषण शरीर को इन धातुओं का लाभ देते है। परन्तु जिनकी सामर्थ्य नहीं क्या उनके लिए यह विज्ञान निरर्थक है। 

आज इन आभूषणों का विज्ञान समझने के लिए हम Dr. रामा वेंकटरमण (M.D. Indian Academy of Acupuncture Science) की पुस्तक The Energy Pathways in Our Body का सफर करेंगे। 

यहाँ मैंने आभूषण वाली जगह आने वाले Accupressure Points को पढ़ने और आप तक लाने का प्रयास किया है।  

कंठिका या कंठ हार 

कंठ के नीचे पित्ताशय (gall bladder) का alarm point होता है। इसपर दबाव रखने से पित्ताशय तक सही ऊर्जा पहुँचती है। कंठिका के नीचे पॉइंट पर दबाव से श्वास सम्बंधित अस्थमा जैसे रोग नहीं होते हैं। यहीं एक पॉइंट होता है जो goitre को नियंत्रित रखता है।   

यहीं एक बिंदु पर कंठिका का दबाव स्त्रियों की मासिक धर्म में अत्यधिक रक्त का रिसाव नियंत्रित करता है और गर्भपात से बचाता है।

कुंडल एवं नथनी

कुंडल और नथनी छेदन पॉइंट पर acupressure therapy देते हैं। त्वचा के नीचे सतह पर शरीर की पुरुष और स्त्री ऊर्जा दोनों का प्रवाह होता है। इन्हें acupressure therapy में यिन यांग कहते हैं। 

कुंडल और नथ के लिए कान और नाक का ये छेद इस स्त्री और पुरुष ऊर्जा के संयुक्त बिंदु पर होता है। इस बिंदु पर छेद करने से दोनों ऊर्जा को सकारात्मक प्रवाह मिलता है। इसके प्रभाव से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। साथ ही मानसिक शान्ति का भी एहसास मिलता है। 

कंकण अर्थात कंगन 

ससुराल की जिम्मेदारियों में स्त्री कभी डिप्रेशन और anxiety का शिकार हो जाती है। सुहागिन स्त्री को हाथों में भरकर चूड़ियाँ और भारी कड़े पहनाये जाते थे। ये वैदिक काल से चल रही एक्यूप्रेशर थेरेपी ही थी। श्रृंगारित कर स्त्री के उन बिंदुओं पर दबाव डाला जाता था जिससे नींद न आना, डिप्रेशन, anxiety, शारीरिक ऊर्जा की कमी जैसी समस्याओं का समाधान होता है।   

इसके अलावा रेकी चिकित्सा भी हाथों से ऊर्जा के प्रवाह पर ज़ोर देती है। रोज नारी की ऊर्जा घर के कार्य करते समय हाथों से निकास न ले इसीलिए नारी चूड़ियाँ पहनती हैं कि गोलाकार चूड़ियों से ऊर्जा वापिस शरीर में प्रवाहित हो जाए। 

करधनी अर्थात कमरबंद या तगड़ी 

कमरबंद स्त्रियों को प्रजनन नलिका (vagina) से संबंधित तकलीफों से बचाता है। इस जगह प्रेशर से स्त्रियों में होने वाली vaginal prolapse और कमर दर्द जैसी तकलीफों में आराम मिलता है।    

अंगूठी

Acupressure से अंगूठी को जोड़ने में अभी मैं असमर्थ हूँ। जल्दी ही इसकी जानकारी एकत्र कर आपसे साझा करुँगी।   

एक वैदिक तर्क  है कि स्वर्ण, चांदी, ताम्बा, लोहा धातु की अंगूठी धारण करने पर हमें इन धातुओं का लाभ मिलता है। खाना खाते समय हाथ मुँह धोते समय शरीर के लिए आवश्यक ये धातु हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं।     

मांग टीका 

केश के मध्य चीर के बीच एक पॉइंट है जो सिरदर्द, sinus, सम्बंधित दिक्कतों को दूर रखता है। वहीं इस जगह दुसरे बिंदु पर दबाव अच्छे sedative या tranquilizer (दिमाग को शांत रखने वाली दवा) का काम करता है।   

जुड़ाबंद या चूड़ामणि 

चूड़ामणि जूड़े में लगता है। औरतें जिस जगह जूड़ा बनाती हैं उसके नीचे शरीर का sensitive और dangerous पॉइंट होता है। यहाँ सीधा प्रेशर खतरनाक हो सकता है इसलिए चूड़ामणि हल्का दबाव डालता है। 

यह बिन्दु मानसिक संतुलन, सुनने और बोलने की क्षमता, brain haemorrhage जैसी समस्याओं का कारक और निवारक होता है। 

बाजूबंद 

बाजूबंद कोहनी के ऊपर बाजू में पहना जाता है। बाजूबंद का प्रचलन उत्तर भारत में काफी कम हो चला है जबकि दक्षिण भारत में यह आज भी दुल्हन का विशिष्ठ अलंकार है। 

नूपुर या पायल 

घुँघरू की मीठी आवाज़ के नीचे बिन कुछ कहे हमारी vericose veins नियंत्रित रहती है। इतना ही नहीं यहाँ पर किडनी के प्रेशर पॉइंट्स भी स्थित हैं। यहीं पर स्थित कुछ प्रेशर पॉइंट्स मासिक धर्म की अनियमितता और vaginal discharge जैसी समस्याओं को नियंत्रित करते हैं। 

बिछिया 

बिछिया की जानकारी मुझे इस किताब में नहीं मिली। लेकिन वैदिक काल से कहा जाता है की पैर के अंगूठे के बराबर वाली ऊँगली की नस गर्भाशय तक जाती है। इसपर बिछिया कस कर पहनने से मासिक धर्म नियमित रहता है और संतान प्राप्ति तक का सफर आसान हो जाता है। 

इसके लिए मैं और references खोज आपसे जल्द साझा करुँगी।  

 

 9.

तिलक या बिंदी 

तिलक सनातन का अभिन्न अंग है। योगविद्या के अनुसार इस जगह आज्ञा चक्र स्थित होता है। स्त्रियां तिलक के ही तर्ज पर फूलों के रंगों, महावर या सिन्दूर की मदद से बिंदी लगाती आई हैं।      

विज्ञान देखें तो यह हमारे तीसरे नेत्र कहे जाने वाले आज्ञा चक्र को सक्रिय करता है। color therapy देखें तो ये हमारे व्यक्तित्व को उन रंगों का सकारात्मक प्रभाव देता है। 

 

10.

सिन्दूर

हल्दी, चूने और पारा धातु के मिश्रण से सिन्दूर बनता है। इसे रास सिन्दूर भी कहते हैं। वैसे प्राकृतिक रूप से यह रक्तबीज या सिंदुरा पेड़ के फलों से बीज पीसकर भी बनता है। 

पारा में यौन उत्तेजना बढ़ाने की क्षमता होती है। यही कारण है कि भारतीय सभ्यता में सिन्दूर सिर्फ वही विवाहित स्त्री लगाती है जिसका पति जीवित है। 

क्या आप जानते हैं?

पारा अंग्रेजी चिकित्सा प्रणाली में अभी भी शोध का विषय है। ऐसा इसलिए क्यूंकि पारा बेहद विषैला एवं हानिकारक धातु है। जबकि आयुर्वेद हज़ारों साल पहले एक विशिष्ट रासायनिक क्रिया के द्वारा इसको औषधीय उपयोग के लायक बनाता है। 

आयुर्वेद के अनुसार पारा औषधीय क्षेत्र में सबसे कीमती है। सोचिये हम कितने हज़ारों साल पहले रास सिन्दूर लगाते आये हैं। क्या ही उचित होगा बिना उस आयुर्वेद विज्ञान को समझे श्रृंगार की इन वस्तुओं को छोड़ देना।        

 

11.

अंजन अर्थात काजल या सुरमा 

काजल आखों की सुंदरता के साथ इनकी रौशनी भी बढ़ाता है। आजकल काजल chemical की मदद से बनते हैं और विभिन्न रंगों में आते हैं। 

मूलतः काजल बादाम को जलाकर उसकी राख को इकट्ठा कर बनता था। आयुर्वेदिक काजल तैयार करने के लिए इसमें नीम के तेल जैसी औषधियां मिलाई जाती थी। इस तरह यह आँखों को संक्रमण से भी बचाता है।    

  

12.

अंगराग (सुगंध) 

हम तैयार होते समय परफ्यूम लगाते हैं। ये प्राय केमिकल्स की मदद से बनते हैं और हमारी सेहत के लिए हानिकारक होते हैं। जबकि पहले के समय में सुंगंध का दूसरा नाम  अंगराग था जो चन्दन का लेप  होता था।  

चन्दन पसीने की दुर्गन्ध से मुक्ति दिलाता है। इसके साथ ही यह तनाव, सिरदर्द, अनिद्रा से भी राहत देता है।    

 

13.

ताम्बूल

अक्सर घर निकलते समय हम मुँह में सौंफ डालते हैं ताकि मुँह से दुर्गन्ध ना आये। हम chewing gum भी खा सकते हैं फिर भी हम सौंफ या इलायची लेते हैं क्योंकि यह फायदेमंद है।  

इसीलिए पहले ताम्बूल अर्थात पान खाने का रिवाज़ था। पान मुँह की दुर्गन्ध मिटाता था। साथ ही जहां जाने के लिए श्रृंगार कर रहे हैं वहाँ भोजन पक्का ही मिलेगा, उसके पाचन के लिए भी हमारे शरीर को तैयार करता है। पान मुँह के स्वास्थ का भी ध्यान रखता है।  

 

14.

कपोल पर तिल 

होठों पर तिल बनाने के पीछे कोई विज्ञान नहीं है। यह इसलिए लगाया जाता है जिससे इतना श्रृंगार कर नारी जब आए तो उसको किसी की नज़र ना लगे।

 

15.

होठों को रंगना 

आज की lipstick को दिमाग से निकलकर आप बुरांश जैसे औषधीय फूलों से होंठ रंग सकें तो इसका वैज्ञानिक तर्क भी समझ जाएंगे 🙂। 

Color Therapy की मानें तो लाल रंग हमारे अंदर ऊर्जा का संचार करता है। लाल रंग उत्तेजना को भी बढ़ाता है। प्राचीन समय में औरतें होंठ लाल ही रंगती थी। सुकुमारी कन्याएं गुलाबी फूलों का प्रयोग करती थी। 

 

16.

पत्रावली 

पत्रावली आज देखने को कम मिलती है। इसका वर्णन राधा कृष्ण की कहानियों से मिलता है। पत्रावली में चेहरे पर रंगों से पत्रावली अर्थात विशिष्ठ चित्र बनाये जाते थे। यह चन्दन के घोल से बनती थी जो ठंडा होता था। चेहरे पर इसका लेप गर्मी के मौसम में त्वचा को ठंडक का एहसास देता था।  

 

ये थे सोलह श्रृंगार की वस्तुएं और उनसे जुड़ा विज्ञान और तर्क। मैं निरंतर इसपर अध्ययन करती रहूंगी और नए तथ्य आपसे साझा करने का प्रयास करुँगी। 

आशा करती हूँ कि आपको मेरा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। अगर आपको इससे जुड़ी कोई जानकारी साझा करनी है तो मुझे comment section में ज़रूर बताएं।