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आज मुझे किसी ने पूछा कि सगाई और शादी में क्या अंतर है? 

उत्तर में मैंने उनसे सवाल पूछा, क्या मंगनी तथा विवाह के बाद लड़के और लड़की का रिश्ता अलग होता है?

ऐसे ही कुछ सवालों को जहन में रखकर सगाई और शादी का फर्क बताने आई हूं, मैं संस्कारी सुरभि। 

सगाई और शादी में क्या अंतर

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सगाई और शादी में क्या अंतर है? आइये जानें फर्क के 11 बिंदु 

सगाई और शादी में क्या अंतर है, आज इस सारणी में ढूंढते हैं –

रस्म क्रम श्रृंखला 
सगाई 

पहले 

शादी 

बाद में 

रस्मों की संख्या 
सगाई 

कम 

शादी 

ज्यादा 

रिश्ते का नाम 
सगाई 

मंगेतर 

शादी 

पति-पत्नी 

अनुबंध वैद्यता 
सगाई 

सामाजिक 

शादी 

कानूनी 

कानूनी अधिकार 
सगाई 

कुछ नहीं 

शादी 

मिलते हैं  

वर का तिलक 
सगाई 

होता है 

शादी 

होता है 

जयमाला की रस्म 
सगाई 

नहीं है 

शादी 

होती है 

सात फेरे 
सगाई 

नहीं होते 

शादी 

होते हैं 

कन्या का गोत्र परिवर्तन 
सगाई 

नहीं होता 

शादी 

होता है 

कन्या का सुहाग श्रृंगार 
सगाई 

नहीं होता 

शादी 

होता है 

कन्या की विदाई और वधु का स्वागत 
सगाई 

नहीं होती 

शादी 

होती है 

अब पढ़िए इन बिंदुओं का विस्तार पूर्वक विश्लेषण। 

 

सगाई पर प्रेम में बांधे अंगूठी और शादी पर गठबंधन बनाये रिश्ता अटूट 

पहले सगाई की रस्म होती है उसके बाद ही शादी होती है। शादी के बाद सगाई करने का कोई औचित्य नहीं होता है।  

सगाई में एक दूसरे को अंगूठी पहनाकर लड़का लड़की दिल का रिश्ता जोड़ते हैं और फिर शादी में गठबंधन कर एक हो जाते हैं।     

 

कुछ घंटे में सगाई की रस्में हुई पूरी अब शादी की रस्मों का सिलसिला चलेगा लंबा 

सगाई में भावी वर-वधु का तिलक, गोद भराई, शगुन, आशीर्वाद, अंगूठी पहनना, यही कुछ रस्में होती हैं। ये 4 से 6 घंटे में पूर्ण हो जाती हैं। 

शादी की रस्में विवाह से कुछ दिन पहले शुरू हो जाती हैं और लड़की की विदाई पर भी ख़त्म नहीं होती हैं।    

 

सगाई की अंगूठी लड़के और लड़की को मंगेतर बनाती हैं, शादी का गठबंधन पति-पत्नी 

सगाई की अंगूठी पहनाते ही लड़का और लड़की एक दूसरे के मंगेतर बन जाते हैं। अब उन्हें एक दूसरे से सार्वजनिक स्थान या कन्या के घर में मिलने की अनुमति होती है। ये अभी भी परिवार के निर्देशन में मर्यादित होता है। 

पति और पत्नी का रिश्ता शादी के गठबंधन के बाद ही बनता है। सप्तपदी के बाद एक दूसरे पर अधिकार मिलता है। 

 

सगाई है एक सामाजिक समारोह पर शादी का पंजीकरण है अनिवार्य 

सगाई घर के चार लोगों के बीच अथवा सभी रिश्तेदारों और कुटुंब को एकत्रित करके भी हो सकती है। ये एक सामाजिक अनुबंध है इसे आप जैसे चाहे निभा सकते हैं। 

कुछ वर्ष पूर्व सनातनी विवाह का पंजीकरण अनिवार्य नहीं था क्योंकि इसके साक्षी सभी परिवार, रिश्तेदार, पड़ोसी व मित्र होते थे। अब भारतीय कानून व्यवस्था के अनुसार शादी का पंजीकरण जरूरी है क्योंकि शादी एक कानूनी अनुबंध है।      

 

सगाई पश्चात मनमुटाव की पंचायत करे परिवार, शादी के बाद अदालत का खुलता है द्वार 

सगाई के बाद अगर लड़का लड़की या परिवारों के बीच मनमुटाव हो जाए तो आपसी सहमति से इसे तोड़ सकते हैं। सगाई के कारण लड़की को लड़के की सम्पति पर अधिकार नहीं मिलते हैं।   

शादी के बाद लड़के और लड़की के अधिकार विधि अनुरूप ही सुरक्षित होते हैं। लड़की का अपने पति की संपत्ति और आय पर लड़के की भाँती ही हक़ होता है। यह अपना घर छोड़ कर आई एक लड़की को कानूनी संरक्षण देता है।     

 

शादी और सगाई दोनों ही समारोह में वर के तिलक की अहम रस्म होती है  

रोली के तिलक का महत्व मैं अपने ब्लॉग में अक्सर ही करती हूँ। रोली अक्षत के तिलक के बिना सनातन धर्म का कोई शुभ कार्य प्रारम्भ ही नहीं होता है। 

सगाई हो या फिर शादी, दोनों ही समारोह में वर के तिलक स्वागत की अलग ही रस्म होती है।        

 

सगाई में अंगूठी पहनाई जाती है और शादी में जयमाला

विवाह में सप्तपदी से पहले कन्या अपने होने वाले पति के गले में जयमाला पहनाकर सप्तपदी के लिए अपनी इच्छा व्यक्त करती है। इसके बाद ऐसा ही लड़का करता है।   

यह रस्म सगाई में नहीं होती है। 

 

सगाई और शादी में सबसे बड़ा फर्क है सात फेरे

सगाई और शादी में सबसे बड़ा अंतर है सात फेरों का। सगाई में अग्नि के फेरे नहीं लगाए जाते। अग्निदेव को साक्षी मानकर सात फेरों की रस्म सिर्फ शादी में ही निभाई है। 

बिना सात फेरों के विवाह संस्कार पूर्ण नहीं होता है। सात फेरों में लड़का एवं लड़की एक दुसरे को सात वचन देते हैं और आजीवन उन्हें निभाने के लिए धर्म से बाध्य होते हैं।      

 

सगाई में कन्या का बाबुल से हुआ रिश्ता पराया शादी में गोत्र पिया का अपनाया 

हमने ऊपर पढ़ा की सगाई में सात फेरे नहीं होते हैं, यह शादी में ही होते हैं। फेरों के बाद ही कन्या अपने पिता का गोत्र त्याग कर पति के गोत्र में प्रवेश करती है।  

आपको यहाँ जान लेना चाहिए कि हिन्दू धर्म में गोत्र का एक वैज्ञानिक महत्व है। यहाँ एक ही गोत्र में विवाह नहीं होते हैं।     

 

सगाई में कन्या का श्रृंगार होता है पर श्रृंगार के सुहाग चिन्ह शादी के बाद पहनाये जाते हैं 

सगाई में लड़की की नन्द व जेठानियाँ मिलकर लड़की को सजाती हैं अंगूठी की रस्म के लिए। कुछ क्षेत्रों में होने वाली सास चांदी के अथवा किसी भी सिक्के से अपनी होने वाली बहू की मांग में सिन्दूर भरती हैं।  

ये श्रृंगार सुहागन का पूर्ण श्रृंगार नहीं होता है। शादी में सप्तपदी के बाद जब लड़का अपनी पत्नी की मांग में सिन्दूर भरता है और उसे मंगलसूत्र पहनाता है तब ये श्रृंगार पूरा हो जाता है।          

 

सगाई में कन्या लड़के से विदा लेती है और शादी में अपने माता पिता से 

सगाई में एक लड़की अंगूठी के साथ अपने होने वाले पिया की आँखों में मिलन के कई सपने सजा जाती है।  लड़का उस अंगूठी को देखकर अपनी होने वाली पत्नी के अपने घर में आगमन के दिन गिनता रहता है।     

शादी संपन्न होने के बाद जहाँ कन्या अपने घर से विदा होती है वहां एक सजनी अपने साजन से पूर्ण मिलन के लिए उनके गृह में प्रवेश  करती है। 

 

यह था शादी और सगाई के बीच अंतर। मैं आशा करती हूँ आपके मन के कुछ प्रश्न अवश्य शांत हुए होंगे। अपना हर अनुत्तरित प्रश्न मुझसे अवश्य साझा करें।