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किसी राजपूत कुंवर सा और बाईसा को देखकर आपके मन में भी राजस्थानी शादी की रस्में जानने की इच्छा जागी है क्या?

अगर हाँ, तो आज मैं संस्कारी सुरभि अपने ब्लॉग में लाई हूँ रजवाड़ो की धरती से मारवाड़ी शादी की रस्में।

राजस्थानी शादी की रस्में

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शादी के मंडप का महत्त्व 

 

रंगीली राजस्थानी शादी की रस्में बन्ना-बन्नी खा रहे हैं जीवन भर की कसमें 

राजपूती संस्कृति की तरह राजस्थानी शादी के रीती रिवाज़ भी बेहद रंगीन हैं। इन्हे रंगीला बनाती है यहां की गोटा सजावट और चटख रंगों का समावेश। 

बिना समय व्यर्थ किए जानते हैं राजपूती विवाह की रस्में।    

 

विवाह पक्का करने की रस्म 

 

टीका 

पहले वर पक्ष कन्या का फिर कन्या पक्ष वर के घर लड़के का तिलक करते हैं। इसके बाद दोनों को शगुन देते हैं। इसी को सगाई भी कहते हैं । सगाई के बाद ही सब सिंझारे (सिंदारे) दिए जाते हैं।   

 

विवाह के पहले राजस्थान में कौन से सिंझारे जाते हैं ? 

  • श्रावण मास की तृतीया तिथि पर वर पक्ष कन्या को शगुन और उपहार भेजते हैं।  
  • तीज (छोटी/ बड़ी) पर कन्या को शगुन भेजा जाता है।
  • गणेश चौथ पर कन्या पक्ष लड़के को शगुन भेजता है।  
  • गणगौर पर लड़की को श्रृंगार का सामान और तिलक जाता है।   
  • चिकनी कोठली पर बन्नी को गहने कपड़े शगुन दिया जाता है। अगर शादी के पहले न हो पाए तब यह फेरों पर दी जा सकती है।  

 

सावा 

शादी के शुभ मुहूर्त को सावा कहते हैं। पुरोहित द्वारा मुहूर्त निकलने के साथ ही ब्याह हाथ का दिन तय होता है। अब छपेंगे शादी के कार्ड। 🙂 

 

कुमकुम पत्रिका      

राजस्थान में शादी का पहला निमंत्रण पत्र हल्दी कुमकुम का तिलक कर उसमें दक्षिणा और सुपारी बाँध कर ख़ास सवाई माधोपुर, रणथम्बोर के त्रिनेत्र गणेश जी को जाता है। इसी को कुमकुम पत्रिका कहते हैं।   

 

विवाह पूर्व की रस्में 

  

भात न्यौतना 

विवाह से कुछ दिन पहले वर और कन्या की माँ अपने मायके पक्ष को विवाह का निमंत्रण देने जाती हैं। अपने साथ परिवार की अन्य औरतें भी ले जाती हैं। इसे भात न्यौतना कहते हैं।                                                           

गणपति पूजा , थापा और बरकत की थैली 

विवाह की रस्में गणपति पूजन से प्रारम्भ होती हैं। इसी समय कलश पूजन, नवग्रह पूजन और मातृका पूजन भी होता है। दीवार पर थापा लगाकर देव प्रजापति जी को आमंत्रित करते हैं। पितरों के नाम का कार्ड यहाँ रख बरकत की थैली में सुपारी के गणेश जी संग पैसों की गड्डी रखी जाएगी। 

 

पीली चिट्ठी 

पीली चिट्ठी लगन पत्रिका है जिसमें लड़का, लड़की का नाम, विवाह की तिथि एवं शुभ मुहूर्त लिखा होता है। इसके अंदर सुपारी, हल्दी, अक्षत बांधकर साथ में नारियल रखकर कन्या पक्ष वर के पिता को भेजता है। यह तय मुहूर्त पर बारात लाने का निमंत्रण है।        

 

ब्याह हाथ

विवाह से 3,5 या 7 दिन लड़के के घर मूंग दाल से और लड़की के घर मूंग दाल पिट्ठी की मंगौड़ी तोड़कर यह रस्म होती है। लड़के के घर इसी समय मौली को पैर के अंगूठे से घुमाकर नाल (छल्ला) बनाते हैं। लड़के की बनाई नाल से फेरों के बाद दुल्हन की बालगुथ होती है।    

  

हल्द-हाथ  

गणेश पूजा वाले दिन ब्याह हाथ के बाद हल्द हाथ होता है। ओखल और मूसल संग छाज को मौली बांधते हैं। मूसल में हल्दी, धान कूटने, छाज में धान को एक से दुसरे में छटकने, नमक को सात बार काटने की रस्म होती है। बनना या बननी अब सुहागनों को मीठा देते हैं और बुआ बनना/बननी की आरती उतारती हैं। 

 

मेहँदी, घूमर और रतिजगा 

शादी के एक दिन पहले पितरो के नाम से रातीजगा होता है। गणेश जी के सामने पितरों के नाम का दीपक रात भर जलता है। जागना है तो नाच गाना तो ज़रूरी है। राजस्थान है तो नाच में होगा विशेष घूमर। इसी समय बनना बननी को मेहँदी भी लगती है। 

  

विवाह वाले दिन की रस्में 

 

भात 

यह मामा पक्ष के भव्य स्वागत की रस्म है। मामा सामर्थ्यानुसार बहन के घर विवाह में सहयोग करते हैं। यह रस्म संकेत है कि बहन की हर जिम्मेदारी में भाई साथ खड़ा है इसीलिए भाई और भाभी बच्चे के विवाह में विशेष आदर के पात्र होते हैं। इसी समय भाई घरवे की रस्म का सामान भी देते हैं।       

 

बान बैठने की रस्म और झोल डालना  

यह रस्म विवाह वाले दिन सुबह होती है। लड़का/लड़की को तेल चढ़ाया और उतारा जाता है। पहले पंडितजी फिर पिता, तब घर के अन्य पुरुष और फिर महिलाएं यह रस्म करती हैं। पिता कटोरे में दही और एक सिक्का डालते हैं और माँ इसे बनना/बननी के सर में मलती हैं। यह है झोल डालना।  

 

कुंवारा मांडा 

यह पूजा थापे के सामने होती है। पंडित जी पूजा कर बनना/बननी को बुरी नज़र से बचाने वाली सांकड़ी राखी (कांकणडोर/ कंगना)  बांधते हैं। यह मौली से बनी होती है जिसमें कौड़ी, मोरफली, लाख, व लोहे के छल्ले बंधे होते हैं।            

 

थाम पूजा  

यह मंडप का स्तम्भ पूजन कर उसे गाढ़ने की रस्म है। इसके बाद ब्राह्मण भोज कराने का विधान है। आज मंडप घर में न होने के कारण ये रस्में अपने मूल स्वरुप में नहीं निभाई जाती हैं। अब कनस्तर में रेत भर उसमें थाम (स्तम्भ) गाढ़ पूजन कर ब्राह्मण भोज के लिए नकद पंडितजी को दे दिया जाता है।  

 

गणगौर पूजा 

लड़की गणगौर पूजा कर गौरी माता से निर्विघ्न विवाह और सुखमय जीवन की प्रार्थना करती है। विवाह के लिए तैयार होने से पहले मामी बन्नी को पायल और बिछिया पहनाती हैं। यह है घरवा रस्म।

 

कोरथ  

दूल्हे के जीजा पगड़ी पहनाते हैं और उसमें कलंगी लगाते हैं। लड़की के पिता लड़के के घर उसके पिता को कोरथ देते हैं। यह बरात लाने का आखिरी निमंत्रण और आग्रह है। इसके बाद जीजा लड़के की कमर में पटके में नारियल बांधते हैं। भाभी काजल लगाती हैं।  

 

बरात निकासी 

दूल्हा तैयार है। अब बहन आरती करती है, माँ दूध पिलाती है और सात बार मूंग चावल खिलाती है। बहनें घोड़ी को चने खिलाती हैं और पूँछ की गुथ बनाती हैं। घोड़ी पर बैठकर बैंड बाजे संग घर से लड़के की निकासी होती है। बारात मंदिर में पूजा के लिए जाती हैं और यहाँ से लड़का दुल्हन  लेकर ही घर लौटता है।  

 

टूटियां 

पहले बरात में घर की औरतें और लड़के की माँ नहीं जाती थी। वो घर में नयी वधु के स्वागत के लिए रूकती थीं।  समय व्यतीत करने के लिए औरतें विवाह का स्वांग रचती है। मिश्राइन लड़के की माँ को चुनरी ओढ़ाती हैं। लड़के की माँ मिश्राइन को शगुन देती हैं।      

 

तोरण और झाला आरती 

मंडप पहुँच लड़का तलवार और नीम छड़ी से तोरण (लकड़ी के तोते) पर वार कर प्रवेश लेता है। चौकी पर लड़के को खड़ा कर लड़की की माँ आरती करती हैं जिसे झाला आरती कहते हैं।

 

दूल्हा मंडप प्रवेश से पहले तोरण पर छड़ी क्यों मारता है ?

इसके पीछे पौराणिक कथा है। एक राजपूत दूल्हा जब अपनी बारात लेकर कन्या के घर पहुंचता है तब वह प्रवेश द्वार पर एक तोते को देखता है। उसे पूर्वाभास होता है कि यह एक राक्षस है। तब वह अपनी तलवार से उसपर वार करता है। पराक्रम की यही परम्परा आज भी राजपूतों के राज्य में निभाई जाती है।

तोरण राक्षस को दर्शाता है इसलिए इसपर कोई शुभ चिन्ह जैसे स्वस्तिक या गणेश जी नहीं होने चाहिए।

  

वरमाला, कन्यादान, फेरे और जूता चुराई 

मंडप में वरमाला, कन्यादान और फेरे होते हैं। यहाँ लड़के वाले लड़की को वरि की तील देते हैं(वस्त्र और श्रृंगार वस्तु)। राजपूती विवाह में सात नहीं बल्कि चार फेरे होते हैं। फेरों के बाद नवविवाहित पति पत्नी थापे के सामने जाकर देव पूजन करते हैं। इसी समय जूता चुराई की रस्म होती है।

 

राजपूती विवाह के चार फेरों की कथा 

कहते हैं कि पाबूजी महाराज अपने वचन की रक्षा के लिए चार फेरे लेकर विवाह बीच में छोड़ गौ रक्षा हित युद्ध में चले गए। वहां वो शहीद हो गए। तभी से उनकी वचन बाध्यता के सम्मान हेतु और विवाह में पड़ी आन के कारण राजपूत समाज चार फेरे संग विवाह संपन्न करता है। पहले तीन फेरे में कन्या व् चौथे फेरे में वर आगे होता है। 

 

पहरावणी व विदाई 

पहरावणी में लड़की पक्ष के बड़े बनने का तिलक कर और उसे स्वर्ण आभूषण पहनाकर शगुन देते हैं और दुशाला ओढ़ाते हैं। कन्या पक्ष के अन्य जमाइयों का तिलक भी इस समय होता है। दूल्हा दुल्हन देवता की धोक खाते हैं और विदाई की रस्म होती है। विदाई के समय गाड़ी के पहिये के नीचे चीनी से भरा सकोरा रखते हैं। 

 

लड़के के घर रस्में 

 

बाढ़ रुकाई और गृह प्रवेश 

प्रवेश द्वार पर लड़के की माँ बहू बेटे की आरती कर उन्हें साड़ी के पल्लू और मौली से नापती हैं। ननदें द्वार रोक बाढ़ रुकाई कर टोल वसूलती हैं 🙂। प्रवेश करने पर सात कांसे की थालियां रखी होती हैं जिन्हे दूल्हा अपनी तलवार से खिसकाता है। वधू बिन आवाज़ थालियों को समेट एक दूसरे के अंदर रख आगे बढ़ती हैं। 

 

जुआ खिलाई और पैर छुआई 

अब दोनों एक हाथ से एक दुसरे की सांकड़ी राखी खोलते हैं। इसके बाद परात में पानी में दूध, दूब, फूल मिलाकर उस पानी में संकड़ी राखी संग अंगूठी डालते हैं। इसे तीन बार निकालना है। इसे कंगना खिलाई भी कहते हैं। इसके बाद दुल्हन घर के बड़ों के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेती है।      

 

मुँह दिखाई 

सभी रिश्तेदार पास पड़ोसी तो पहले ही एकत्रित थे कंगना खिलाई की रस्म के लिए। अब वो बारी बारी से वधु का घूंघट उठा कर मुँह देखेंगे और देंगे उसको शगुन। 

     

देव पूजन और रसोई पूजन

अब बनना बननी देव पूजन करते हैं। अगर कुल की देवी हैं तो उनका पूजन कर उन्हें धूक देते हैं। उनसे नवजीवन के लिए आशीर्वाद लेते हैं। इसके बाद रसोई में चूल्हा पूजन कर नई बहू पहली रसोई में मीठा बनाकर सबको खिलाती है। इसके लिए उसको शगुन मिलता है। 

 

ये थी मारवाड़ी शादी के रीति रिवाज़ संग रजवाड़ो की खुशबू जो मिलकर सजाती है राजस्थान को। आशा है आपको मेरा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ब्लॉग में कोई त्रुटि लगे या कुछ छूट गया हो तो मुझे अवश्य सूचित करें। आपके सुझाव से मुझे अपने ब्लॉग को सुधारने का अवसर मिलेगा।