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शाखा पोला बंगाली सुहागन स्त्री का एहसास कराता है। इसे देखकर कौतूहल हुआ कि बंगाली शादी की रस्में कैसे होती है। 

यही जानने अपनी बंगाली दोस्त को पकड़ा और आ गई आपको बताने कि बंगाली लोगों की शादी कैसे होती है। 

बंगाली शादी की रस्में

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बंगाली शादी की रस्में है ख़ास कालरात्रि से पहले नहीं मिलती मिलनरात 

कभी सोचा आपने कि बंगाली शादी में कितनी रस्में होती हैं। मैं तो इनके बारे में पढ़ते और लोगों से बात करते यही सोच रही थी कि आखिर कितनी रस्में हैं ! 

आइये मेरे साथ चलिए बंगाली विवाह अनुष्ठान में। 

 

विवाह के पहले की रस्में 

 

कोना देखा , पाका देखा और आशीर्वाद    

कोना (कन्या) देखा लड़के के लिए कन्या ढूंढने की प्रक्रिया है। कुंडली मिलान कर रिश्ता पक्का करना है पाका देखा। दोनों पक्ष लड़का एवं लड़की को शगुन देकर शादी से जुड़ी सब बातें पक्की करते हैं। बड़े वर और कन्या को रिश्ते की स्वीकृति स्वरुप आशीर्वाद देते हैं। इसके बाद ही शादी की तारीख भी पक्की होती है।          

 

ऐबूड़ो भात 

ऐबूड़ो मतलब कुंवारा और भात मतलब चावल। कुंवारी अवस्था में आखिरी भोजन, ज़ाहिर है विशिष्ठ होगा। परिवार के बड़े अपने हाथों से कन्या या वर को यह खिलाते हैं। बचा भोजन परिवार के अन्य कुंवारे बच्चों को परोसा जाता है। मान्यता है कि इससे उनका भी विवाह जल्दी होगा। 

परिवार के रिश्तेदार भी ऐबुड़ो भात के लिए वर अथवा कन्या को अपने घर में आमंत्रित करते हैं जो विवाह के पहले कभी भी हो सकता है।  

 

होलूद कोटा और धान कोटा

होलूद मतलब हल्दी,धान यानी चावल और कोटा का अर्थ कूटना। साबुत हल्दी और धान कूटकर रस्म के लिए हल्दी तैयार। ये रस्म 3, 5 या 7 सुहागन औरतें निभाती हैं। 

यहां हल्दी, धान की पवित्रता और शुद्धता का इतना महत्व है कि इस समय औरतें बात भी नहीं कर सकती हैं। गलती से इसमें थूक गिर गया तो! आखिर इसी से आगे पितृ पूजा भी होनी है। ऐसा सुनिश्चित करने के लिए वो मुँह में पान और सुपारी रखती हैं।  

 

गंगा और कोला गाच निमंत्रण 

पवित्र गंगा नदी बंगाल में प्रमुख जीवन स्रोत है। ऐसे में विवाह के लिए उसका जल लेने से पहले परिवार की औरतें इसकी पूजा कर उन्हें आदरपूर्वक विवाह में आमंत्रित करती हैं।     

कोला गाच है केले का पेड़ जो हिन्दू धर्म में अत्यंत पूज्य है और मंडप में स्तम्भ स्वरुप रहता है। गंगा नदी के बाद केले के पेड़ को भी इसी तरह निमंत्रित किया जाता है।    

 

बंगाली विवाह का दिन 

 

दोही मंगल 

यह मंगल बेला अर्थात सूर्योदय से पहले कन्या या वर को दही और मुड़की (गुड़ और खील के लड्डू) खिलाने की रस्म है। हिन्दू धर्म में दिन सूर्योदय से होता है। विवाह के दिन वर और कन्या उपवास रखते हैं इसलिए उन्हें सुबह सूर्योदय से पहले यह खिलाया जाता है।  

जॉल साजा  

जॉल साजा जल भरकर लाने की रस्म है। सूर्योदय से पहले वर या कन्या परिवार के संग तालाब में या (सर्वश्रेष्ठ हो अगर पास में गंगा नदी) गंगा किनारे जाकर माँ गंगा की पूजा करते हैं। उसमें डुबकी लगाते हैं और उसका जल भरकर लाते हैं। इसी जल से हल्दी की रस्म के बाद वर / कन्या स्नान करते हैं।  

 

नंदीमुख और गाए होलूद 

नंदीमुख पंडितजी द्वारा पूजा अर्चना कर परिवार की सात पीड़ी के पूर्वजों को आह्वाहन कर आमंत्रित करने और उनका आशीष मांगने की रस्म है। पूजा में कन्या के पिता बैठते हैं जो कन्यादान करेंगे। कन्या इस समय टोपुर (बंगाली दुल्हन का मुकुट) पहनती है। इसमें होलूद कोटा में तैयार की गयी हल्दी और धान इस्तेमाल होते हैं और पंडित कन्या/ वर को धागा बांधते हैं।      

गाए अर्थात शरीर। गाए होलूद शरीर पर हल्दी लगाने की रस्म है। लड़के की हल्दी के बाद के बची हुई हल्दी कन्या के घर उसको लगती है। इसके बाद सभी आपस में हल्दी खेलते हैं।  

 

बोर जात्री , तत्त्वा और बोर बोरॉन 

बोर जात्री का अर्थ है बारात। बारात में लोग थाल में दुल्हन के लिए उपहार जैसे साड़ी, श्रृंगार का सामान, मिठाई , आदि सजा कर लाते हैं जिसे तत्त्वा कहते हैं। इसमें सबसे ख़ास व्यक्ति होता है जो एक हाथ में रसगुल्ले की हांडी और दुसरे हाथ में हांडी पर मछली (हल्दी कुमकुम लगी) लटकाकर लाता है। इस तरह आती है बारात।   

बोर बोरॉन (आरती) दूल्हे की आरती की रस्म है। दुल्हन की माँ आरती की विशिष्ठ थाल (बारन डाला) लेकर बंगाली तरीके से दूल्हे की आरती करती हैं और उसपर अक्षत गिराती हैं।               

 

चड़नाटोला

कन्यादान करने वाला व्यक्ति दूल्हे को मंडप में लाता है। बाल विवाह के समाय दूल्हे को गोद में उठाकर लाते थे इसीलिए इसे चड़नाटोला कहते थे। अब ऐसा करना संभव नहीं है। 🙂 

दुल्हन के भाई/जीजा मुंह को पान के पीछे छिपाए दुल्हन को लाते हैं। पहले दुल्हन को भी पटले पर ही लाते थे।      

 

सात पाक , शुभो दृष्टि और माला बोदल  

पटले पर दुल्हन को बैठाकर भाई दूल्हे के चारो तरफ सात बार परिक्रमा लगाते हैं। आमने सामने अब दुल्हन पान के पत्ते हटाकर पहली बार दूल्हे को  प्रेमपूर्वक देखती है जिसे शुभ दृष्टि कहते हैं। आज यह प्रथम दर्शन नहीं है 🙂।

सभी औरतें ऊलूलूलू की शुभ ध्वनि निकालती हैं| कहा जाता है यह नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करती है। दूल्हा दुल्हन अपने गले में पहनी फूल माला दूसरे को पहनाते हैं। यह है माला बॉदल।  

 

सम्प्रदान , सप्तपदी और अंजलि  

अब है सात फेरों की रस्म जिसके बिन दुल्हिन नहीं दूल्हा की 🙂। फेरों से पहले लड़की के पिता सपत्नी कन्यादान की रस्म निभाते हैं। इसके बाद ही सप्तपदी अर्थात अग्नि के सात फेरों की रस्म होती है। वर और कन्या हवं की अग्नि में खील डालते हैं जिसे अंजलि कहते हैं। अंजलि रस्म भारत के लगभग हर प्रांत में फेरों के समय होती है। केरल में कहते हैं कि इस तरह अग्नि से वर कन्या का हाथ मांगते हैं क्योंकि अग्नि ही कुंवारी कन्या की रक्षक है।        

 

सिन्दूर दान और बाशोर जगा 

कुछ लोग यह रस्म सिक्के से करते हैं तो कुछ सुपारी काटने वाले जांति से। सिंदूर लगाते समय दूल्हा दुल्हन का चेहरा नहीं देखता है। तीन बार सिन्दूर लगाया जाता है और हर बार ऐसा करने के बाद उसपर दूल्हा पक्ष से आया लज़्ज़ा वस्त्र (घोमटा) ढकते हैं।     

बची हुई रात्रि पहर सोने के लिए नहीं बल्कि हंसी मजाक के लिए है। मतलब बाशोर जगा।

 

बशी बिये और बिदाई 

अगली सुबह दुल्हन को दूल्हा फिर सिन्दूर लगाता है और वहां उपस्थित जन नवविवाहित पति पत्नी को आशीर्वाद देते हैं। यह है बशी बिये। बिदाई का समय आ गया है। लड़की पिता के घर धान वर्षा करती हुई पिया के घर जीवन के नए सफर पर रवाना हो रही है। 

 

विवाह के बाद की रस्में 

कन्या के घर से तो हो गई सबकी विदाई, देखे दूल्हे के घर क्या रस्में निभाई!

  

बोधू बोरन 

घर के द्वार पर लड़के की माँ नव वधु की आरती करती हैं। थाली में आलता और उसके आगे सफ़ेद वस्त्र बिछा है।  नयी बहू आलते की थाली में पैर रखकर आगे बढ़ती है। गृहलक्ष्मी के आगमन पर उसके पदचिन्हों को ससुराल पक्ष हमेशा के लिए संजों कर रखता है। इस समय लड़की साथ में धान बिखेरती हुई आती है जिसे बाद में समेटकर रखते हैं।  

 

कोड़ी खेल और कालरात्रि 

नवीन रिश्तों के मन की तह खोलती कोड़ी खेलने की रस्म भारत के हर हिस्से में विभिन्न स्वरुप में मनाई जाती है।  मकसद यह जानना ही होता है कि जीवन की गाड़ी में प्रभुत्व किसका रहेगा।  

यह रात्रि कालरात्रि होती है। सूर्यास्त से सूर्योदय तक पति पत्नी एक दूसरे का मुख नहीं देखते हैं।     

 

बऊ भात और फूल शोज्जा 

आज नववधू की पहली रसोई रस्म है। विभिन्न व्यंजन बनेंगे। वधु शगुन के लिए खीर बनाएगी और सबको भोजन परोसेगी। यह है बऊ भात या बंगाली reception। आज कन्या पक्ष से लोग तत्त्वा लेकर आते हैं।  

पंडितजी पति पत्नी के हाथ में बाँधा गया धागा खोलते हैं जिसके बाद फूलों से सजी सेज नसीब होती है।  अब क्या समझाने की जरूरत है, सुहागरात है भई 🙂। 

 

अष्ट मंगला 

शादी के आठ दिन बाद पति पत्नी लड़की के मायके जाते हैं। वहां श्री सत्यनारायण जी की कथा होती है।  

 

ये थी बंगाली विवाह की रस्में। आशा है मेरा यह ब्लॉग आपको पसंद आया होगा। मुझे comment कर टिप्पणी अवश्य करें। इससे मेरी लेखनी को बल मिलेगा। 

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