पंजाबी दुल्हन चूड़े में दूर से नज़र आती है और जब तक चूड़ा है नई ही रहती है। कभी सोचा है आपने कि दुल्हन चूड़ा और कलीरे क्यों पहनती हैं ।
सवाल का जवाब लेकर आई हूँ, मैं संस्कारी सुरभि।
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दुल्हन चूड़ा और कलीरे क्यों पहनती हैं ? जानें इस परम्परा का रहस्य
हमारे शास्त्रों में नारी के हर श्रृंगार के पीछे कुछ वजह है चाहे वैज्ञानिक हो या सांकेतिक। आज इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि दुल्हन चूड़ा और कलीरे क्यों पहनती हैं।
हम चूड़ा जिसे कहते हैं वह प्राय पंजाब प्रांत की तरफ इशारा करता है। चूड़ियां तो भारत के हर प्रान्त में पहनी ही जाती हैं। यहाँ हम जानेंगे चूड़ा और कलीरों के बारे में।
चूड़ा
दुल्हन के सोलह श्रृंगार में से एक है चूड़ा
चूड़ा की रस्म भले ही पंजाब में होती है पर शादी में भर भर कर चूड़ियां पहनना भारतीय परम्परा का हिस्सा हर जगह है। शास्त्रों के अनुसार सुहागन स्त्री के सोलह श्रृंगार बताये गए हैं जिनमें एक है चूड़ियाँ।
पंजाब प्रांत में चूड़ियों के स्थान पर चूड़ा होता है। यह पहले हाथी के दांत का बना होता था पर अब हाथी के दांत का इस्तेमाल करना गैर कानूनी है। यही कारण है कि अब चूड़ा प्लास्टिक या फिर पक्के लाख का बना होता है। इसका मुख्य कारण है कि कांच की चूड़ियां चटख जाती है और बदल दी जाती हैं। चूड़ा नव विवाह का पर्याय बन एक साल तक हाथों में रहता है।
चूड़े में बसा है ननिहाल का प्यार और सुहागनों का आशीर्वाद
भारतीय संस्कृति हमेशा से ऊर्जा की बात करती आई है जिसकी पुष्टि आज का विज्ञान भी करता है। हम बड़ों का आशीर्वाद झुक कर लेते हैं ताकि उनकी सकारात्मक ऊर्जा हमें मिले।
चूड़ा मामा लाता है, इसे नानी प्यार से भिजवाती हैं। मामा दुलार से बैठाकर शादी वाले दिन पहनाता है। सभी सुहागनें इसे छूकर अपना आशीर्वाद देती हैं। यह चूड़ा सकारात्मक ऊर्जा और यादों का भण्डार बन जाता है। यह ऊर्जा दुल्हन को एक साल नए परिवेश में ढलने में सहायक होती है।
एक साल तक देता है चूड़ा वधु और परिवार को नवविवाहिता का एहसास
पंजाब प्रान्त में वधु जब तक चूड़ा पहना हो नयी दुल्हन सी रहती है। शायद हाथों में चूड़ा सिर्फ घर की बहू को ही नहीं उसके ससुराल वालों को भी याद दिलाता है कि दुल्हन अभी नई है।
है ना, मजेदार और special feeling 🙂! दुल्हन से तब तक घर का काम भी नहीं कराया जाता है।
कलीरे पहनने का राज़
यह समझने के लिए कुछ प्रश्नों का जवाब देखते हैं।
कलीरे किस चीज से बने होते हैं
कलीरों को पहनने की वजह जानने से पहले यह जानना बेहद जरुरी है कि मूलतः कलीरे बनते कैसे हैं। आपको हैरानी होगी की कलीरे नारियल गिरी और मुरमुरों को कलावे में पिरो कर बड़ी मेहनत से तैयार होते हैं। साथ ही इसमें चांदी या सोने के कलीरे भी जोड़े जाते थे जो कन्या का स्त्रीधन बढ़ाते थे।
यकीन नहीं होता तो ऊपर graphic देख लीजिये, यह कोई model नहीं है बल्कि एक दुल्हन है।
कलीरे क्यों पहनते हैं
पहले लड़की डोली में विदा होती थी और सफर लम्बा होता था। ऐसे में बिटिया भूख लगे तो किसी को कैसे कहे? यही समझ दादी नानी प्रेम से मुरमुरे और नारियल गिरी से सुन्दर कलीरे तैयार करती थी। भूख में मुरमुरे काम आते थे और नारियल गिरी से प्यास कम हो जाती थी।
आज के समय में कलीरे सिर्फ श्रृंगार की ही वस्तु है।
कलीरे कौन पहनाता है
कलीरे दुल्हन की बहनें और सहेलियां बांधती हैं। रस्म के समय हसीं मजाक होना तो लाज़मी है। ऐसे में दुल्हन जब जब उनको देखेगी उन पलों को याद कर स्वतः ही मुस्कुराएगी।
इसके अलावा कलीरे की एक मज़ेदार रस्म है कलीरे झाड़ना। दुल्हन विदा होते समय कलीरे सभी कुंवारी बहनों और सखियों के सर पर झाड़ती है। जिस किसी के सिर पर कलीरा गिरता है, ऐसा माना जाता है कि अब शादी के लिए अगला नंबर उसका ही है। इस तरह कलीरे एक शादी संपन्न होते होते दूसरे विवाह की उम्मीद जगाकर विदाई का दर्द कम कर देते हैं।
आप समझ ही गए होंगे अब की कलीरे भूख मिटाने के लिए होते थे और इससे जुडी कुछ रस्में विदाई के पलों को खुशनुमा बनाती थी।
ये थे चूड़े और कालीरों से जुड़े तथ्य। अगर इसमें कुछ छूट गया है तो मुझे comment section में अवश्य बताएं। चूड़ा जितने प्रेम से पहनाया गया है उतने ही आदर के संग चूड़ा वढाना न भूलें।
आपको मेरा ब्लॉग कैसा लगा यह भी ज़रूर लिखें और शादी से जुड़ी सभी रस्मों को खूब एन्जॉय करें।

रस्म और रिवाज़ हैं, एक दूसरे के हमदम!
कलम से पहरा इनपर, रखती हूँ हर दम!