Select Page

बिटिया की विदाई का सपना देखा था वो सच हो रहा है।  मन में खुलबुली तो होगी ही कि विदाई की रस्म में क्या होता है ?

आपकी इस उत्सुकता का हल लेकर आई हूँ, मैं संस्कारी सुरभि।  

विदाई की रस्म में क्या होता है

यह भी पढ़ें 

मेहंदी की रस्म कैसे की जाती है 

विदाई की रस्म में क्या होता है ? भीगी पलकों के बीच निभती हुई रस्में 

बेटी की ग़मगीन विदाई में आपको डर है कि कहीं कोई ज़रूरी रस्म भूल न जाएँ।  

इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ें और विदाई की इन रस्मों को कहीं note ज़रूर कर लें।  विदाई की रस्में शुरू होती हैं हैं फेरों के बाद। बताइए आप विदाई कैसे शुरू करते हैं।  

 

लड़की के थापे की पूजा और कलग़ी उतारने की रस्म  

घर में विवाह की रस्में शुरू हुई थी थापा लगाने से जहाँ कुल देवता को स्थान दिया था। फेरों के बाद, नवविवाहित जोड़ी लड़की पक्ष के बड़ों के साथ थापे के सामने कुल देवता की पूजा करते हैं और आशीर्वाद लेते हैं। यहाँ लड़का अपनी सास को छंद सुनाता है। बदले में सास उसे शगुन देती है। छंद क्या ?🙂 

छंद पकैया छंद पकैया छंद में लग गयी ताली, 

बेटी आपके घर की, हुई अब किसी की घरवाली’ 🙂 

उठने से दामाद साफे की कल्गी सास को उतारकर देता है। जानते हैं कि विदाई के पहले दूल्हे की कलगी क्यों उतार ली जाती है। यह संकेत है कि जिस तरह वह आपके घर का मान, आपकी बेटी ले जा रहा है उसी प्रकार वह अपना मान भी उन्हें सौंप कर जा रहा है।  

 

दामाद के तिलक की रस्म 

इसमें लड़के की सास अपने दामाद का तिलक करती हैं और शगुन देती हैं। यह तिलक सबसे पहले लड़की की माँ करती हैं फिर उसके बाद बड़ी बहन और बाकी बड़ी औरतें करती हैं।  

कुछ घरों में दूल्हे के बाद घर के बाकी दामाद का भी तिलक कर शगुन दिया जाता है। तिलक मान का प्रतीक है अतः सभी दामाद इसके हकदार होते हैं।  

 

मेहँदी के छापे और धान की वर्षा संग लड़की की विदाई 

तिलक के पश्चात जाते हुए,  लड़की घर के प्रवेश द्वार पर मेहँदी से दोनों हाथ के छापे लगाती है। ये छाप घरवालों को घर में उसकी खुशबू का एहसास कराती है। जाते हुए कन्या हाथों में खील/धान भरकर अपने पीछे फेंकती है जिसे उसकी माँ अपनी झोली में लेती है। वो  बाद में अंदर जाकर पूरे घर में इसे बिखेर देती है। आप सोच रहे होंगे कि लड़की विदा होते हुए धान वर्षा क्यों करती है, है न ? 

बेटी को लक्ष्मी कहते हैं।  लक्ष्मी एक घर से विदा होती है तब अपने पीछे धान की वर्षा करती जाती हैं। यह संकेत है कि बेटी विदा हो रही है पर पीछे घर में धन धान्य की वर्षा का शुभाशीष देकर विदा ले रही है। 

 

डोली में बिटिया को दिया जाता है पानी भरा गिलास और खांड कटोरा 

रुदन करती बिटिया जब डोली में बैठती है तब कन्या की माताजी उसे सुन्दर सा पानी भरा गिलास देती हैं। यह एक निशानी स्वरूप बिटिया के साथ रहता है। मेरे घर की रसोई में आज भी माँ का दिया हुआ वो ताम्बे का गिलास उनकी याद दिलाता है।  

इसी वक़्त बिटिया की गोद में खांड कटोरा देते। यह रस्म उत्तर भारत में होती है। ससुराल पहुँचने पर पालकी से उसे जो भी उतारता है उसे खांड कटोरा और उसपर लिपटी साड़ी भी मिलती है। पहले यह काम नाइन का होता था। 

 

डोली को कंधा देते थे सब भाई और पिता करता था बखेर 

पहले विदाई डोली में होती थी। डोली को बाद में कहार(डोली उठाने वाले ) लेकर जाते थे। कुछ दूर तक कंधा भाई देते थे। अब पालकी वाली डोली नहीं होती है और बिटिया गाड़ी में विदा होती है। अब भाई गाड़ी को धक्का देते हैं।    

पुराने समय में घर के बड़े डोली के पीछे सिक्कों की बरसात करते थे। ये सिक्के गरीब लोग उठा लेते थे। ऐसा माना जाता था कि इस तरह डोली और नवविवाहितों की नज़र उतार ली है। अब सिक्कों की बरसात नहीं होती पर पैसे वार कर गरीबों में बाँट दिए जाते हैं। 

 

ये थी विदाई की रस्में। विदाई का पल लड़की और उसके माता पिता शादी के पहले ही कितनी बार जीते हैं। विदाई कितनी भी आंसुओं भरी हो पर रस्में तब भी चलती रहती हैं। विदाई पर अपनी बेटी से अपने मन की बात करें शायराना अंदाज़ में। इससे शायद आंसुओ भरे पल हंसी में बदल जाएँ।     

अगर आपके यहाँ विदाई पर अलग रस्म होती है तो मुझे जरूर बताएं। मैं उनको ब्लॉग में शामिल करने का पूरा प्रयास करुँगी।  इसके साथ ही आपको मेरा ब्लॉग कैसा लगा यह मुझे comment section में अवश्य बताएं।