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शराब को सोमरस मानने वाले बोलते हैं शादी में शराब पीना क्यों गलत है। आपको भी लगता है, जश्न का मतलब शराब।  

हाँ! तो आज मैं संस्कारी सुरभि, इस ब्लॉग में बताउंगी कि शादी में शराब पीना क्यों पाप है। 

शादी में शराब पीना क्यों गलत है

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शादी के मंडप का महत्व

 

अगर शराब सोमरस है तो शादी में शराब पीना क्यों गलत है ?

शराब की तुलना देवताओं को प्रिय सोमरस से करने वालों को लगता है कि शादी में शराब पीने से क्या होता है ? क्या सच में सोमरस और शराब में कोई अंतर नहीं है?

शादी में शराब पीने से क्या नुकसान होता है? 

 

मंडप में है देवताओं का स्थान 

विवाह का कार्य घर में प्रारम्भ होने पर मंडप गाढ़ा जाता है। विधिवत मंडप पूजन कर देवताओं का आह्वान होता है। आज के परिवेश में मंडप भले ही संस्कार विधि संगत नहीं है, तब भी देवताओं का आह्वान तो होता ही है।  

जिस स्थान पर देवताओं को बुलाकर बैठाया गया हो क्या वहां शराब पीना उचित है। क्या शराब पीकर मंदिर में पूजन करना उचित है? नहीं? तो विवाह के मंडप में कैसे सही है। वैदिक विवाह के साक्ष्य ही देव हैं। ऐसे में अगर हम उनकी उपस्थिति को ही नकार दें तो फिर विवाह कैसा?

 

शराब को सोमरस कह देने से उसका स्वरूप नहीं बदलता      

ऋग्वेद के पहले भाग का चौथा, पांचवा, चौदहवा, पंद्रहवा, सोलहवा, बाइस व् तेईसवाँ सूक्त पढ़ा जाए तो वहां सोमरस का उल्लेख है। सोमरस का उल्लेख ऋग्वेद में विस्तृत रूप में है। मैं बस कुछ सूक्त का उल्लेख कर रही हूँ 

इन सूक्त में इंद्रदेव, अग्नि, वरुण आदित्य, अश्विनीकुमारों व् अन्य देवी देवताओं को यज्ञ में सोमपान के लिए आमंत्रित किया गया है। कहा गया है कि सोमरस मधुर है , शोधित (शुद्ध) है, दही मिश्रित है, ऋतुओं के अनुसार अलग है, तीखा है, दूध मिलाकर एवं छानकर उत्तर वेदी के पास रखा गया है। 

इनको पढ़ने के बाद शराब और सोमरस का एक ही होना नहीं समझ आता। क्या आपको यह दोनों एक लग रहे हैं? अगर हाँ तो शराब में दूध और दही मिलाकर पी लेंगे क्या आप? 

 

अतिथि विवाह के साक्ष्य हैं जिन्हे पूर्ण होश में रहना चाहिए 

संस्कार विधि के अनुसार विवाह के प्रथम साक्ष्य मंडप में उपस्थित देवता हैं और उसके बाद अतिथिगण। शराब एक नशीला पेय है जो पीने वाले को मानसिक रूप से बहुत हल्का महसूस कराता है। इसकी ज़रुरत तब मह्सूस होती है जब कोई अपने जीवन की मौजूदा परिस्थिति से नाखुश हो और वहां होकर भी न होने का एहसास करना चाहे।  

जिस विवाह में शास्त्र संगत साक्ष्य ही अतिथि हैं वहाँ उनका शराब के नशे में होना कैसे उपयुक्त हो सकता है? यह दलील दी जा सकती है कि हम पूर्ण होश में रहते हैं। मैंने भी कई पीकर गिरते लोगों को कहते सुना है कि हमें मत पकड़ो हम होश में हैं। 🙂

 

शराब का नशा माहौल ख़राब कर शादी तुड़वा भी सकता है  

शराब के नशे में लोग छोटी सी बात का भी बतंगड़ बना देते हैं। कुछ लोग महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार भी कर बैठते हैं। शादी के माहौल में हर रिश्ते की गरिमा होती है। दुर्व्यवहार वाले आचरण के चलते यह गरिमा भंग होती है और माहौल को ख़राब करती है। 

मदिरापान किसी के लिए हर्ष का विषय हो सकता है। व्यक्तिगत हर्ष के लिए 100 लोगों का उल्लास भंग करना अनुचित ही है। हो सकता है किसी को इससे कोई नशा न होता हो पर एक को देखकर दूसरे भी पीने के लिए आतुर रहते हैं। सब पर तो नशा बेअसर नहीं हो सकता है। 

 

धर्म, प्रतिष्ठा और माहौल के संग नुकसान वित्तीय भी हो सकता है

बेटी की शादी में पिता जीवन भर की पूँजी लगाता है। ऐसे में अगर आखिरी क्षण मोटा खर्चा आ जाये तब वह क्या करेगा। शराब परोसना का खर्च हो सकता है आप हटा दें। कहीं आपको ऐसा तो नहीं लगता कि आगंतुक अपने पैसे से शराब पी रहे हैं तो आपको क्या फर्क पड़ेगा? 

अगर हाँ, तब आप कुछ भूल कर रहे हैं। लोग जब शादी में शराब पीकर होश खो दें तो तोड़ फोड़ पर उतारू हो जाते हैं। ऐसे में नुकसान जिसका भी हो भरपाई तो लड़की के पिता के सर पर ही आ पड़ती है जो हर तरह से गलत है। 

  

यह थे कुछ कारण की शराब शादी में क्यों नहीं पीनी चाहिए। अगर आपको समझ आये तो इसकी जगह अच्छे snacks खिलाएं 🙂।  

ब्लॉग लिखते हुए मुझे पापा याद आ गए। उनका कथन था, मैं पीता नहीं और साथ बैठकर पिलाता भी नहीं। हमारे घर अच्छे खासे पीने वाले भी शराब पीकर आने की हिम्मत नहीं करते थे। वो कहते थे कि कोई होश में न हो तो उसे क्या कहना। जब होश है तभी उसे बता दें हमें क्या स्वीकार्य नहीं है।          

इस विषय पर आपके और सवाल हों तो मुझे कमेंट सेक्शन में अवश्य बताए।  मेरे पास सब सवालों के जवाब हैं ऐसा नहीं कहूँगी परन्तु अगर मेरे पास नहीं होगा तो जवाब तलाशने का प्रयास जरूर करुँगी।