Select Page

जब दुल्हन बनने का समय आ जाए जान लेना चाहिए कि सोलह श्रृंगार में क्या शामिल है?

आपके भी यह जानने की घड़ी आ गयी है तो हाज़िर है श्रृंगार सूची।  

सोलह श्रृंगार में क्या शामिल है

यह भी पढ़ें 

| दुल्हन के सोलह श्रृंगार के पीछे वैज्ञानिक कारण क्या हैं | 

सोलह श्रृंगार में क्या शामिल है? नारी श्रृंगार के देवी प्रिय अलंकार 

शादी एक बेहद पावन अवसर है जिसमें दुल्हन हर मुमकिन श्रृंगार करती है। ऐसे में सोचना तो बनता है कि सोलह सिंगार में क्या क्या है। 

पेश है दुल्हन के सोलह श्रृंगार का सामान सारणी।  

 

क्रमांक       श्रृंगार वस्तु 
दन्त मंजन 
2.  उबटन
3.  मज्जन (स्नान) 
4.  सुहाग जोड़ा  
5. केशविन्यास
6.  केश में फूल या गजरा 
मेहंदी और महावर 
8.  आभूषण 
9.  तिलक या बिंदी 
10.  सिन्दूर 
11  अंजन अर्थात काजल या सुरमा 
12   अंगराग (सुगंध)
13   ताम्बूल 
14.  कपोल पर तिल 
15.   होठों को रंगना 
16.   पत्रावली 

सोलह श्रृंगार की लिस्ट आपको हर जगह अलग मिलेगी क्यूंकि समय के साथ जीवनशैली भी परिवर्तित होती है। मैंने साहित्यकारों और कवियों विभिन्न वर्णन को ध्यान में रखकर यह श्रृंखला बनाने का प्रयास किया है।   

दन्त मंजन 

सोलह श्रृंगार का पहला चरण है दांतों का साफ़ करना। इसमें तो कुछ नया नहीं है। फर्क बस इतना है कि पहले जो कार्य दातुन से होता था उसकी जगह अब टूथब्रश ने ले ली है।  

 

उबटन

स्नान से पहले बेसन या किसी भी अन्य उबटन का लेप कर शरीर से मृत कोशिका अर्थात dead skin को हटाना सोलह श्रृंगार का ही भाग है। इससे पूरे शरीर की त्वचा नूतन यानी नयी हो जाती है। आजकल हम पार्लर में फेशियल और body polishing कराते हैं। 

 

मज्जन (स्नान) 

सोलह श्रृंगार में तीसरा चरण है मज्जन जिसका अर्थ है स्नान। इससे साफ़ पता चलता है कि सोलह श्रृंगार का तात्पर्य मात्र सुन्दर दिखने से नहीं हैं। आखिर जब तक तन और मन को शुद्ध एहसास न हो तब तक कैसा श्रृंगार 

 

सुहाग जोड़ा  

सुहागन के सोलह श्रृंगार में स्नान के पश्चात अगला चरण है वस्त्र धारण करना। सुहाग जोड़ा प्राय सुहाग के प्रीतकात्मक रंग अर्थात लाल रंग का होता है। लाल रंग नारी को दैवीय सौंदर्य प्रदान करता है। अगर आप सोलह श्रृंगार धारण करना चाहती हैं पर लाल जोड़ा नहीं पहनना है तो विवाह फेरों में पिया की चढ़ाई हुई लाल चुनरी अवश्य ओढ़ लें।   

 

केशविन्यास

केश विन्यास का अर्थ है बालों को संवारकर सलीके से सजाकर रखना। सोलह श्रृंगार का ही अंग है केश को विभिन्न प्रकार के जूड़े या चोटी में बांधकर उनको विशेष अलंकारों से सजाना।   

 

केश में फूल या गजरा 

बालों को सुन्दर तरीके से बाँधने के पश्चात उन्हें और आकर्षक बनाते हैं पुष्प। केश में फूलों की भीनी खुशबू नारी को ही नहीं प्रफुल्लित करती बल्कि उसके आस पास सब को मोहित कर देती है। इसके लिए गुलाब, मोगरे और चमेली को विशिष्ट स्थान प्राप्त है।   

 

मेहँदी और महावर 

मेहँदी स्त्री का विशेष श्रृंगार है। शादी हो या तीज त्यौहार हो, हाथों में मेहँदी लगाना अनिवार्य हो जाता है। इसी प्रकार महावर या आलता स्त्रियां पैरों में लगाती हैं। यह लाल, मैरून या गुलाबी रंग का तरल पदार्थ है। रुई की मदद से इसे बेहद खूबसूरत डिज़ाइन में लगाया जाता है। 

 

आभूषण 

आभूषण स्वर्ण या चांदी के भी हो सकते हैं।  बस स्मरण रहे की पैरों में पहने जाने वाले आभूषण स्वर्ण के नहीं होते हैं क्यूंकि स्वर्ण को माँ लक्ष्मी का स्वरुप माना जाता है। जानते हैं स्त्री के विशेष आभूषण। 

कंठिका या कंठ हार 

सुहाग की निशानी होने के कारण इसमें शादीशुदा स्त्री के द्वारा अन्य कंठिकाओं संग मंगलसूत्र को चुना जाता है।  सनतान विज्ञान के अनुसार इसमें स्वर्ण या चांदी धातु अवश्य होना चाहिए।  

कुंडल 

कुण्डल अर्थात कान का श्रृंगार। कान के छेद में लटकने वाले कुण्डल में कुछ भार होता है जो सदैव कान के छेदन पॉइंट पर एक दबाव अर्जित करते हैं। 

कंकण अर्थात कंगन 

सुहागन स्त्री का विशेष आभूषण है कलाई में खनकते कंगन संग चूड़ियाँ। यह सौंदर्य तो बढ़ाते ही हैं, इनकी खनक एक अलग ही सकारात्मक एहसास जगाती है। 

करधनी अर्थात कमरबंद या तगड़ी 

साड़ी हो या लहंगा पर उसपर स्वर्ण या चांदी की करधनी जब लटकती है तब नारी का सौंदर्य ही नहीं ऐश्वर्य भी झलकता है। आजकल सोने चांदी की करधनी की जगह गोल्डन बेल्ट ने ले ली है।  

करदर्पण (आरसी नामक अंगूठी)

नाम के अनुरूप यह एक विशेष अंगूठी है जिसमें आईना लगा होता था। यही श्रृंगार करने में मदद करती थी। दर्पण वाली इस अंगूठी को आरसी कहते थे।  आजकल इस दर्पण की आवश्यकता नहीं है पर अंगूठी तो आज भी ख़ास आभूषण है।  

नथनी 

नथनी दुल्हन और सुहागनों द्वारा नाक के दायीं ओर छिद्र में पहने जाने वाला एक गोलाकार आभूषण है। यह chain की सहायता से कान के कुंडल के साथ केश में पिरो दिया जाता है। 

मांग टीका 

मांग टीका स्त्रियां अपने केश को बीच से चीर अर्थात मांग निकालकर उसमें लगाती हैं। राजस्थान में यह विशेष गोल लट्टू के आकार का होता है जिसे बोरला भी कहते हैं। 

जुड़ाबंद या चूड़ामणि 

जुड़ाबंद या चूड़ामणि कमलाकार आभूषण है जिसे स्त्रियां अपने बालों के मध्य लगाती हैं। 

बाजूबंद 

बाजूबंद कोहनी के ऊपर बाजू में पहना जाता है। बाजूबंद का प्रचलन उत्तर भारत में काफी कम हो चला है जबकि दक्षिण भारत में यह आज भी दुल्हन का विशिष्ठ अलंकार है। 

नूपुर या पायल 

नूपुर का अर्थ है घुंघरू जिनका स्थान है पायल में। ये सिर्फ पैरों का सौंदर्य ही नहीं बढ़ाते हैं बल्कि इनकी मधुर आवाज़ जहाँ भी स्त्री जाती है उस माहौल को ही श्रृंगारित कर देती हैं। 

बिछिया 

बिछिया चांदी की अंगूठी जैसी होती है जिसे दोनों पैर के अंगूठों के बराबर वाली ऊँगली में पहना जाता है। यह एक कटे हुए छल्ले की तरह होती है। इसे दबाकर ऊँगली के चारों तरफ कसा जाता है । 

 

तिलक या बिंदी 

तिलक मात्र श्रृंगार नहीं है अपितु सनातन में इसका हर जगह एक विशेष स्थान है। इसे दोनों भोंहों के बीच लगाया जाता है। स्त्रियों के जीवन में आजकल श्रृंगार तिलक का स्थान पहले कुमकुम फिर अब बिंदी ने ले लिया है। 

 

सिन्दूर

विवाह के समय फेरों के संपन्न होने के बाद वर कन्या की मांग में सिन्दूर भरता है। इसके पश्चात विवाहित स्त्री की सूनी मांग को बेहद अशोभनीय कहा गया है। 

 

अंजन अर्थात काजल या सुरमा 

आँखों का श्रृंगार है अंजन जिसे सामान्यतः काजल कहते है। औषधीय वस्तुओं से बना काले रंग का काजल हमेशा सोलह श्रृंगार का अंग रहा है।   

 

अंगराग (सुगंध) 

अंगराग शरीर पर लगाया जाने वाला ऐसा लेप है जिससे खुशबू आये। यह अक्सर चंदन गुलाबजल का लेप होता था । फिर इत्र और perfume ने यह कार्य संभाल लिया है।     

 

ताम्बूल

मुख को सुगंध का श्रृंगार प्रदान करता है ताम्बूल अर्थात पान। 

 

कपोल पर तिल 

होठों के ऊपर काला तिल बनाना शायद आज अजीब लगे परन्तु पुराने समय में सोलह श्रृंगार में एक चरण यह भी था।  

 

होठों को रंगना 

भारतीय स्त्री को होठ रंगना कॉस्मेटिक कंपनी ने नहीं सिखाया है। होठों को फूलों के रंग से अन्यथा महावर से रंगना सदैव से नारी के श्रृंगार का हिस्सा था और आज भी है।  

 

पत्रावली 

पत्रावली आज के समय में देखने को कम मिलती है। इसका वर्णन राधा कृष्ण की कहानियों से मिलता है। पत्रावली में चेहरे पर रंगों से पत्रावली अर्थात विशिष्ठ चित्र बनाये जाते थे। 

सोलह श्रृंगार का उल्लेख

आप जानते हैं कि सोलह श्रृंगार का उल्लेख शिव पुराण में गणगौर पूजा से सम्बंधित अध्याय में मिलता है। माता पार्वती ने शिव पुराण की कथा सुनने से पूर्व सोलह श्रृंगार और भगवान् शिव ने सोलह कलाएं धारण किये थे। सोलह श्रृंगार को अखंड सुहाग का प्रतीक माना जाता है। 

 

यह थे दुल्हन के या सुहाग श्रृंगार के सोलह अलंकार। आशा है हर दुल्हन माँ पार्वती को प्रिय सोलह श्रृंगार अलंकृत कर अटल सुहाग का वर पाए। 

आपको मेरा यह ब्लॉग कैसा लगा इसकी जानकारी मुझे comment section में अवश्य दें।