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एक लड़की को चूड़ा पहने देख मेरे मन में ख्याल आया कि सिख धर्म की शादी कैसे होती है?

इसी कौतूहल का जवाब मैंने गुरुद्वारा और सिख दोस्तों में ढूंढा और तैयार हो गया मेरा यह ब्लॉग।      

सिख धर्म की शादी कैसे होती है

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सिख धर्म की शादी कैसे होती है ? ढोल संग आनंद कारज का सफर 

हंसी ठहाकों संग पंजाबी शादी की रस्में मजाकमय होती है पर रस्में यहां मजाक बिल्कुल नहीं होती। आज आपसे साझा करूंगी आनंद कारज में क्या होता है ?  

ज्यादा संजीदा नहीं होना है बस मेरे साथ सफर कीजिए और आनंद लीजिये सिक्ख ब्याह दी रस्म दा। 

 

ब्याह पक्का करने की रस्में 

 

रोका ceremony 

सिक्ख ते सिंखड़ी के रिश्ते को मंजूरी देती है रोका रस्म। बेहद सादगी से कन्यापक्ष के बड़े लड़के के घर उसे शगुन देकर अपनाते हैं। कुछ जगह लड़के वाले भी यही रस्म निभाते हैं। मूलतः बेहद सादगी से यह रस्म निभाई जाती थी पर अब काफी धूमधाम से मनाते हैं।  

 

ठाका और माँ हथ 

दोनों पक्ष बैठकर आनंद कारज और कुरमई की तारीख पक्की करते हैं, यह है ठाका। दूर रहने वाले रिश्तेदारों को तारीख पक्की कर चिट्ठी भेज दी जाती थी।  

आनंद कारज से महीने पहले सात सुहागनें मंगल गीत गाते हुए इमामदस्ते को मौली बांधकर माँ की काली दाल कूटती हैं। यह है माँ हथ। इसके बाद खरीदारी शुरू होगी। शादी की खरीद में सबसे पहले खरीदा जाता है रुमाला। यह चमकीला वस्त्र है जो गुरु ग्रन्थ साहिब जी को आनंद कारज में ओढ़ाते हैं।     

 

कुरमई 

यह रस्म लड़के के घर ग्रंथ साहिब रखकर या फिर गुरुद्वारे में होती है। कन्या पक्ष से लोग सुंदर थाल में लड़के के लिए उपहार लाते हैं। ग्रंथि छोटा सा पाठ करते हैं। इसके बाद लड़के के गले में लाल पटका पहनाकर लड़की के दादा फिर घर के अन्य बड़े रिश्तेदार पटके में छुआरे और शगुन डालते हैं। वो उसे कृपाण देते हैं और कड़ा पहनाते हैं।  

 

चुनरी चढ़ाना 

यह रस्म शादी से कुछ दिन पहले होती है। वर पक्ष की महिलाएं लड़की को शादी का जोड़ा और श्रृंगार का सामान भेंट करती हैं। लड़के की माँ होने वाली बहू को चुनरी चढ़ाती हैं जिसे सब बड़े हाथ लगाकर आशीर्वाद देते हैं।  

ज्यादातर यह चुनरी फुलकारी के काम की होती है जो पंजाब की विशेषता है। 

 

व्याह से पहले की रस्म

 

वटना 

शादी में 3, 5, या 7 बान निकलते हैं। जिसके जितने बान निकलते हैं उतनी ही बार लड़के और लड़की को वटना मतलब हल्दी उबटन लगता है। घर में संगीत होता है, ढोलकी बजती है। लड़की के घर गाये जाने वाले गीत सुहाग और लड़के के घर गाये जाने वाली गीत घोड़ी कहलाते हैं। 

           

गुरु पाठ और कढ़ाई चढ़ाना 

आनंद कारज से पहले दोनों घरों में पाठ रखा जाता है। इच्छानुसार कोई अखंड तो कोई सुखमनी साहिब का पाठ रखता है। इसी दिन कढ़ाई में विवाह के पकवान बनने शुरू हो जाते हैं। 

 

नानकी शक 

यह नानके मतलब नाना, नानी, मामा पक्ष के स्वागत की रस्म है। नानके लेकर आते हैं लड़के लड़की के कपड़े, चूड़ा, एवं अन्य बहुमूल्य उपहार। स्वागत भी ढोल के साथ किया जाता है और उनके लिए खास भोज का प्रबंध होता है। यह रस्म आनंद कारज के एक दिन पहले होती है।   

 

मेहंदी रात और जाग्गो 

लड़के के घर से आई शगुन की मेहँदी लड़की को लगती है। घर के आंगन में ढोलकी बजती है। कहीं कोई मेहँदी लगा रहा होता है तो कोई नाच गा रहा है। पूरी रात यूँ ही बीत जाती है।   

मेहंदी लगने के बाद घरवाले पिंड वालों को जगाने निकलते हैं। यह है जग्गो। मामी या ममेरी भाभी अपने सिर पर मटका रख उसपर जलता दिया लेकर चलती है। भाई के हाथ में घुंघरू बंधा डंडा होता है। चलते चलते वो किसी का भी दरवाजा खटका देते हैं जहां सबका स्वागत होता है। यूँ ही थोड़ी पंजाब के पिंड और उनका अपनापन मशहूर हैं।         

 

आनंद कारज के दिन 

 

घड़ौली 

सुबह सुबह लड़की की भाभी अमृत बेला में गुरुद्वारा से अमृत जल लेकर आती हैं। ढोल के संग अमृत बेला में पवित्र जलस्रोत से आये जल से ही विवाह के दिन कन्या स्नान करती है और शादी का जोड़ा पहनती है। यही रस्म लड़के के घर लड़के की भाभी करती है।         

 

लड़की के घर चूड़ा और कलीरे पहनाने की रस्म 

नानके से आया चूड़ा रात भर छाछ और पानी के मिश्रण में भिगो कर शुद्ध किया जाता है। आनंद कारज वाले दिन वटना और स्नान के बाद माँ लड़की की आँखें बंद करती है। मामा प्रेम पूर्वक भांजी को पांच पांच के जोड़ से चूड़ा पहनाते हैं। चूड़ा कपड़े से ढककर बाँध दिया जाता है जिसे दुल्हन आनंद कारज के बाद ही देखती है। 

इसके बाद बहनें उसमें कलीरे बांधती हैं। 

 

लड़के के घर सेहरा बंदी और बारात प्रस्थान 

शेरवानी में तैयार बेटे को पगड़ी आज खुद पिता बांधता है।बहन पगड़ी पर मोती की लड़ियों से बना सेहरा बांधती है। भाभी काजल लगाती हैं। जीजा प्रेम से घोड़ी पर चढ़ाते हैं। बहन घोड़ी को चने खिलाती हैं। सबके प्रेम को संजों कर दूल्हा बारात लेकर गुरुद्वारे की ओर बढ़ता है। 

  

आनंद कारज

आनंद कारज फेरों की रस्म है। सिख गुरु नानक जी के शिष्य हैं। उनके वचन- गुरु ग्रन्थ साहिब के ही चार फेरे लगाकर सिख विवाह होता है। फेरों से पहले ग्रंथि लड़का लड़की की रज़ामंदी जानते हैं। ग्रंथि उन्हें शादी से जुड़े गुरु वचन (गुरबचन) सुनाते हैं। दूल्हा दुल्हन माँ हथ के बाद शादी की पहली खरीद रुमाला, ग्रन्थ साहिब जी को भेंट करते हैं।    

अब आप सोच रहे होंगे, सिख शादी में 4 फेरे क्यों होते हैं ? सिक्खों के चौथे गुरु अमरदास जी ने चार लवण लिखे हैं। फेरों के समय इन्ही को शिरोधार्य कर लड़का लड़की फेरे लेते हैं। अतः फेरे सात नहीं चार होते हैं। 

प्रत्येक आनंद कारज गुरुद्वारा में register होता है। अंत में पाठ और फिर अरदास होता है।   

आनंद कारज के चार लवण लड़का और लड़की को वैवाहिक जीवन की दिनचर्या को पालन करने का आदेश देते हैं। गुरु के शिष्य बनकर सदैव गुरु की वाणी सुनने, बोलने और अपने जीवन और हृदय में उतारकर गुरु के दिखाए लक्ष्य की ओर अग्रसर होने का आदेश देते हैं।  

विवाह संपन्न होने की अरदास के बाद गुरुद्वारे में लंगर भी होता है| इसमें लड़के के माता पिता अपनी बहू के लिए ढककर लंगर की थाली लगाकर लाते हैं और उसपर कुछ शगुन भी रखते हैं। 

 

आनंद कारज के बाद 

 

Reception 

सिख समुदाय की ख़ास बात है कि गुरु के दर पर पैसा रुतबा फर्क नहीं डालता है सब गुरु के समान शिष्य हैं। लेकिन ‘पंजाबियों दी शान वखरी’‘ 🙂। सादगीपूर्ण आनंद कारज के बाद शान दिखाने के लिए reception तो बनता है। आनंद कारज की रस्म गुरूद्वारे में होती है जहाँ बेहद करीबी लोग ही आते हैं। बाकी सब reception में नयी जोड़ी को आशीर्वाद देते हैं।  

 

डोली

पहले लाडो लकड़ी की पालकी में विदा होती थी जिसे डोली कहते थे। अब कार में विदाई होती है पर नाम आज भी डोली ही है। बचपन की यादों को संग में सहेजे लड़की कलीरे अपनी बहनों पर झाड़ भीगी पलकों संग विदा लेती है।     

 

गृह प्रवेश 

ससुराल में लड़के की माताजी बेटे और बहु के सर से पानी वारने की रस्म करती हैं। गृह प्रवेश करने पर बहनें entry देने का toll अर्थात शगुन मांगती हैं 🙂। अगली सुबह बड़ी नन्द भाभी के बाल बनाती है।  

 

फेरा डालने की रस्म 

फेरा डालने की रस्म से पहले बहू गुरुद्वारा में माथा टेक कर आती है। यहीं पर नीम की टहनी से नव-विवाहित एक दुसरे की पिटाई करती हैं। यह है छड़ी खेलना। फिर यही रस्म देवर भाभी के साथ होती है। 

जीवन का नया चक्र प्रारम्भ हुआ है। इस चक्र को पूरा करती है लड़की पति संग अपने पिता के घर फेरा डालकर।  

 

ये थी पंजाब के सिख समुदाय के विवाह की रस्में। यह आराम से किया जाए तो बेहद सादगी से गुरुद्वारे  में हो सकता है वर्ना पंजाब के swag में कोई कमी नहीं है।   

मेरा ब्लॉग आपको कैसा लगा मुझे comment section में अवश्य बताएं।