विभाजन के बाद सिंधी समुदाय भारत के जिस भी हिस्से में बस गया वहीं की मिटटी के रंग में सिंधी शादी के रिवाज़ भी रंगते चले गए।
इस blog में मैं आप सबके सामने सिंधी शादी की रस्मों की रूपरेखा लेकर आई हूँ।

झूलेलाल जी का लेकर आशीर्वाद निभाएं सिंधी शादी के रिवाज़
सिंधी शादी के रिवाज़ भारत के अन्य विवाह से मिलते जुलते ही हैं।
आइये जानते हैं क्या हैं भारत के ऐश्वर्यमय जीवन जीने वाले समुदाय सिंधी विवाह के रिवाज़।
सिंधी ब्याह से पहले की रस्में
कच्ची मिश्री और पक्की मिश्री
कच्ची मिश्री रिश्ता समझ आने पर तिलक करने की रस्म है। लड़का लड़की का तिलक कर उन्हें शगुन देकर मिश्री से मुँह मीठा करते हैं। रिश्ता अभी कच्चा जुड़ा है तो नाम है कच्ची मिश्री।
पक्की मिश्री एक तय तारिख पर सब रिश्तेदारों को बुलाकर होती है। लड़के की माँ और बहनें लड़की को चुनरी चढाती हैं और गोद में शगुन और उपहार देते हैं। इसके बाद लड़का लड़की एक दुसरे को अंगूठी पहनाते हैं।
डिवुकी
यह रस्म शादी के ठीक दस दिन पहले होती है। लड़की के घर की सब सुहागिन स्त्री गेंहू और चावल साफ़ करने का शगुन करती हैं। वो ओखली की पूजा कर उसमें हल्दी की सात गाँठ कूटती हैं।
लड़के के घर सात सुहागनें लोकगीत गाते हुए बोछनि पर कढ़ाई करती है। दूध में भिगोई हुई लौंग और इलायची बोछनि पर लगाते हैं। गुलाबी पटके के एक सिरे को पलट और सिलकर थैला नुमा बनाते हैं जिसे गोदा कहते हैं।
लाडा डाजो
लाडा सिंधी संगीत की रस्म है। शादी से पहले जब रिश्तेदार इकट्ठे होने लगते हैं तब ढोलक की जगह प्लेट(लाडा) और परात को बजाकर सिंधी गाने गाते हैं और नृत्य करते हैं।
डाजो बिटिया के साथ जाने वाला हर सामान है जिसे वो शादी के बाद लेकर जाएगी। विवाह से पहले इसे एक जगह कर पैक कर सजाया जाता है।
बराना सत्संग
बराना सत्संग सिंध प्रांत के पूज्य भगवान् झूलेलाल जी का सत्संग है। सिंधी इन्ही की पूजा करते हैं। ये वरुण देव के अवतार हैं। विवाह की रस्में इसी के बाद शुरू होती हैं।
तेल बुक्की, वनवस और हल्दी
शादी से एक दिन पहले कई चरण में होती है ये बेहद ख़ास सिंधी रस्में।
- महाराज जी (सिंधी पुरोहित) द्वारा बनाया गया मुहूर्त पत्र दीवार पर लगाते हैं। इसके नीचे पितरों के नाम का तेल का दिया सीप में जलाते हैं।
- दूल्हे की माँ पितरों के दिए के सामने रखने के लिए मंदिर के नल या कुँए से मटकी में जल भरकर सिर पर रखकर लाती हैं। घर की दहलीज पर घर का दामाद इस पानी को कटार से काटता है। वो प्रार्थना करता है कि इस घर पर लगी कोई भी बुरी नज़र यहीं ख़त्म हो जाये।
- महाराज जी मुहूर्त पत्र के सामने पूजा कराते हैं। इसी बीच सात सुहागनें लड़का/ लड़की संग हल्दी कूटती हैं। लड़का सात बार चक्की में पितरों के नाम से गेहूं डालकर उलटी चक्की चलाता है। इसे वनवस कहते हैं। माँ को बांह में लाल पट्टी और सबको रक्षा सूत्र बंधता है। इसके साथ ही लड़के/लड़की को पैर में रक्षा पोटली बांधते हैं।
इस पूजा के बाद लड़की या लड़के को सब हल्दी और सिर में तेल लगाते हैं। घर के बच्चे दूल्हे के कपडे फाड़ देते हैं जो इस बात परिचायक है कि जो पुराना जीवन था वो अब ख़त्म हुआ।
रक्षा पोटली एक छोटे से कपड़े में राई बांधते हैं जिसपर एक लोहे का छल्ला लगा होता है। नज़र और बुरी शक्तियों से रक्षा के लिए इसे मौली से पैर में बांधते हैं। |
दिख और बारात प्रस्थान रस्म
दिख दूल्हे को कच्चे दूध से स्नान कराने के बाद तैयार करने की रस्म है। दूल्हे की माँ दूल्हे के बाल कंघी कर थोड़े से बाल में कलावा बांधकर चोटी बनाती है। इसके बाद बहन सुरमा लगाती हैं व उसके कंठ,मुंह, कमर, हाथ और पैर पर घी मिश्री का मिश्रण लगाती हैं।
घर का दामाद दूल्हे के कमर में सफ़ेद पटका, सिर पर बोछनि बांधकर बोछनि पर मुकुट बांधते हैं। बहन दूल्हे के गले में गोदा रख उसमें मेवे डालकर बांधती हैं। दूल्हे को भगवान् नारायण स्वरुप मान सब उसके पैर छूते हैं। इसके बाद मंदिर में दर्शन कर बारात प्रस्थान करती है।
बारात स्वागत और वरमाला
बारात के आने पर कन्या पक्ष उनका स्वागत करता है। दुल्हन के आगमन पर दूल्हा और दुल्हन के बीच एक चादर का पर्दा होता है। चादर के ठीक नीचे एक प्लेट रखी होती है जिसमें दूल्हा और उसपर दुल्हन अपना पैर रखती है। दुल्हन की माँ कच्चे दूध से दोनों के पैर धोती हैं। इसके बाद दोनों एक दूसरे को वरमाला पहनाते हैं।
कन्यादान , पल्ली पल्लो और हथियलो
मंत्रोच्चारण के संग कन्या के पिता अपनी पुत्री का हाथ लड़के के हाथ में सौंप देते हैं और कन्यादान की रस्म अदा करते हैं। इसके बाद पल्ली पल्लो आता है जो कि गठबंधन की रस्म है।
दुल्हन का हाथ जो पिता ने दूल्हे के हाथ में सौंप दिया था उनको इसी अवस्था में लाल कपड़े में लपेट देते हैं। इसी को हथियलो कहते हैं।
फेरे
लड़की के सभी भाई एक एक कर हवं कुंड में आहुति देते हैं और हवं की अग्नि का सेक हथियलो को देते हैं और फिर दूल्हा दुल्हन के सर पर हाथ रखते हैं। इसके बाद वो दोनों का आशीर्वाद लेते भी हैं। इसके बाद ही दूल्हा दुल्हन शादी की कसमें खाते हुए अग्नि के फेरे लेते हैं। दूल्हा दुल्हन को मंगलसूत्र पहनकर मांग भरता है।
सिंधी विवाह के बाद की रस्में
दातार
यह नई दुल्हन के स्वागत की रस्म है। भारत के हर प्रांत की तरह ही सिंध की संस्कृति में भी लड़के की माँ ही अपनी नव वधु और बेटे का स्वागत करती है। बहु जो कि उनके घर की लक्ष्मी है उसका स्वागत वो दूध और पानी से उसके पैर धोकर करती हैं।
नमक शगुन
गृह प्रवेश के बाद दूल्हा दुल्हन एक दूसरे के साथ एक चुटकी नमक exchange करते हैं। इस रस्म को नकारात्मक ऊर्जा को ख़त्म करने का टोटका कह सकते हैं। आपको इसका सटीक कारण पता हो तो मुझे भी comment कर अवश्य बताइयेगा।
चानर
विवाह के कुशलता पूर्वक संपन्न हो जाने पर झूलेलाल जी का धन्यवाद करने के लिए उनकी पूजा की जाती है। उसी को चानर कहते हैं।
सतौरा और घडज़ानि
सतौरा सिंधी में पग फेरे की रस्म है। विवाह के बाद लड़की के माता पिता बेटी दामाद को दोपहर के खाने पर बुलाते हैं। नव दंपत्ति खाना खाते हैं वहां लड़की के माता पिता उनको खूब सारे आशीष और तोहफों के साथ विदा करते हैं।
इसके बाद लड़के पक्ष के लोग रिसेप्शन देते हैं जिसे घड़जानि कहते हैं।
ये थी सिंधी शादी की रस्में। सिंध आज भले ही पाकिस्तान की सरहदों में हो पर भारत में बसे सिंधी लोग आज भी झूलेलाल जी का नाम लेकर वैसे ही विवाह की रस्में निभाते हैं। समय के साथ उनका स्वरुप बदला जरूर है किन्तु उन्होंने अपनी संस्कृति को जिन्दा रखा है।
आशा है आपको मेरा ब्लॉग पसंद आया होगा। अपने सुझाव और टिप्पणी मुझे comment section में अवश्य बताएं। आपके पास इसके अतिरिक्त कोई जानकारी हो तो मुझसे जरूर share कीजिएगा।

रस्म और रिवाज़ हैं, एक दूसरे के हमदम!
कलम से पहरा इनपर, रखती हूँ हर दम!