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क्या वरमाला की रस्म देखकर आपने सोचा है कि आखिर शादी में वरमाला क्यों पहनाई जाती है ? 

अगर हाँ, तो मैं संस्कारी सुरभि, आज आपको बताती हूँ कि जयमाला की रस्म क्यों होती है। 

शादी में वरमाला क्यों पहनाई जाती है

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शादी में वरमाला क्यों पहनाई जाती है ? दिलचस्प कारण

वैदिक विवाह की रस्मों का वैज्ञानिक कारण होता है अथवा वो उस समारोह में आनंद भरने की सूचक होती हैं। 

बिना समय व्यर्थ करे जानते हैं वरमाला रस्म के पीछे क्या logic है  ! 

कौन पहनाता है सबसे पहले वरमाला, इसमें छिपा है जयमाला का भेद सारा 

भारत में सदियों से स्वयंवर का प्रचलन था जिसमें वर का चुनाव कन्या का अधिकार था। कन्या अपनी इच्छा का इजहार चयनित वर के गले में वरमाला पहना कर करती थी।  

आज भी वरमाला पहले कन्या ही पहनाती है उसके बाद वर पहनाता है। वरमाला का जन्म कन्या के वर चयन करने के मूल अधिकार से हुआ है।       

माँ लक्ष्मी द्वारा नारायण के चयन से पौराणिक तर्क विष्णु पुराण के अनुसार समुद्र मंथन के समय जब माँ लक्ष्मी का उद्गम हुआ तब देव और असुरों में उनको पाने की ललक जाग उठी। तब यह निर्णय हुआ कि देव और असुरों की सभा में माँ लक्ष्मी जिसको चाहे अपनी इच्छा से चुन सकती हैं। तभी सभा में भगवान नारायण आ गए और माँ लक्ष्मी ने उनका चयन किया।   

पुष्प हैं कुदरत में नवजीवन का आधार 

नए वृक्ष, तरु, लताएं कैसे उत्पन्न होती हैं, बीज से? वह बीज भी पुष्प में से ही निकलता है ना! इस प्रकार खिला पुष्प पराग का भण्डार है जो आगे नए जीवन का आधार बनता है। 

सनातन में विवाह ही तो मनुष्य प्रजाति के जीवन चक्र का धार्मिक आधार है। खिले पुष्पों की वरमाला उसी बुनियाद को याद दिलाती है। 

 

खिले फूलों की माला संकेत है, दो परिपक़्व होते लोग महकाएंगे संसार 

वरमाला के पुष्प इशारा करते हैं परिपक्व होते दो लोगों की तरफ। वे परिपक्व हो रहे हैं नव गृहस्थ संसार को जन्म देने के लिए और उसके नियमों का पालन करने के लिए, अपने आसपास के वातावरण को सुगंधित करने के लिए।   

यूँ ही तो नहीं कहा गया है कि विवाह के उपरान्त वर वधु दो परिवारों का संतुलन और सम्मान कायम रखते हैं। वरमाला संकेत देती है कि अब अपनी सोच भी खिले हुए पुष्प की तरह रखनी है जो परिवारों को आनंद से भर दे।  

वरमाला के फूलों की भीनी खुशबू करती है हृदय को आनंदित 

पुष्प की भीनी खुशबू मन को प्रफुल्लित करती है और हृदय को आनंद से भर देती है। पारम्परिक तौर पर वरमाला में ऐसे ही पुष्पों का प्रयोग होता था। जैसे गेंदा, गुलाब, चमेली, जूही। इन पुष्पों के तेल तो हम वैसे भी मस्तिष्क को शांत करने के लिए इस्तेमाल करते हैं।         

विवाह सनातन में जीवन के 16 संस्कारों में से एक संस्कार है। ऐसे में इस समारोह में मन के किसी भी कोने में मायूसी या निराशा की जगह नहीं है। फेरों से पहले उसी आनंद को भरने का काम करती है वरमाला।  

यह थे वरमाला रस्म के पीछे छिपे कुछ कारण। आशा करती हूँ आप समझ गए होंगे कि वरमाला रस्म का क्या तर्क है।  वैसे विवाह संस्कार की मानें तो वरमाला की रस्म गन्धर्व विवाह का अंग हैं ब्रह्म विवाह का नहीं | इससे निष्कर्ष यह भी निकलता है कि आज के समय में वरमाला की रस्म एक रस्म ही है और इसके कारण मात्र सांकेतिक हैं। 

अगर आपको इसके अतिरिक्त भी इस रस्म को निभाने की कोई वजह ज्ञात है तो मुझे comment section में जरूर बताएं| मुझे अपने ब्लॉग में ऐसे तथ्यों और तर्कों को शामिल करने में बहुत हर्ष होगा।