क्या आपके या किसी परिजन के घर शादी है? क्या विवाह की पहली रस्म को लेकर मन में शंका है कि रोका ceremony क्या है?
रोका क्या होता है? इस प्रश्न के निवारण हेतु मैं संस्कारी सुरभि लाई हूँ यह ब्लॉग।
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विवाह की रस्मों का शुभारम्भ करने वाली रोका Ceremony क्या है ?
अपने तीन दशक से ज्यादा के जीवन में मैंने शादी की रस्मों को ध्यान से देखा और समझने का प्रयास किया है।
आज मैं आपके साथ साझा करुँगी कि रोका ceremony में क्या होता है और रोका ceremony कहाँ की रस्म है।
रोका ceremony के पीछे छिपा मूल भाव क्या है?
रोका समारोह एक सार्वजनिक ऐलान है कि भावी वर और वधु के परिवार जनों ने इस रिश्ते को स्वीकृति दे दी है। रोका सभी बड़ों के आशीर्वाद की अभिलाषा भरी रस्म है। इसी के बाद शुरू होता है विवाह की शुभ तैयारियों का सिलसिला।
भाव-ए-रोका
किसी भी रिश्ते का दूसरा नाम है बंधन जो उसमे बंधे लोगों को रिश्ते की मर्यादा निभाने के लिए बाध्य करता है। विवाह एक सामाजिक बंधन है। रोका दोनों पक्षों को सामाजिक तौर पर बाध्य कर सगाई तक के नाजुक समय में मर्यादित रखता है।
रोका कब होता है
कन्या और वर पक्ष के लोग अपने बच्चों के लिए जीवनसाथी की तलाश करते हैं। जब लगता है कि वो सही इंसान मिल गया है तब सबसे पहले रोका कर वो रिश्ता पक्का कर देते हैं। शादी सगाई का मुहूर्त तो निकलता रहेगा। रिश्ता पक्का हुआ है तो छोटा सा जश्न तो बनता है न! बस इसलिए सबसे पहले होता है रोका।
रोका सेरेमनी में क्या रस्में होती हैं ?
रोका तिलक की रस्म है तो ज़ाहिर है तिलक ही सबसे महत्वपूर्ण है। देखते हैं रोके की रस्म श्रृंखला।
वर का तिलक
कन्या पक्ष के बड़े पुरुष जैसे दादाजी, पिताजी, ताऊजी, या भाई , वर का तिलक करते हैं।
वर का मुँह मीठा कराया जाता है।
वर को शगुन दिया जाता है।
कन्या का तिलक
वर पक्ष के बड़े पुरुष या महिला कन्या का तिलक करते हैं।
कन्या का मुँह मीठा कराया जाता है।
कन्या को शगुन दिया जाता है।
आशीर्वाद
वर और कन्या को साथ में बैठाया जाता है।
सभी परिवार जन उनके भावी जीवन के मंगलमय होने का आशीर्वाद देते हैं।
वैसे यहाँ यह उल्लेख करना आवश्यक होगा कि रोका ceremony के लिए लड़का और लड़की का एक ही स्थान पर होना आवश्यक नहीं है। यह रस्म दोनों के घरों पर अलग समय में बेहद सादगी से निभाई जा सकती है।
ये थी जानकारी रोका ceremony in Hindi। रोका में तिलक होता है पर सगाई के तिलक से भिन्न है। यहाँ confuse न होना।
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रस्म और रिवाज़ हैं, एक दूसरे के हमदम!
कलम से पहरा इनपर, रखती हूँ हर दम!