बिहारी शादी की रस्में अपने आप में बेहद ख़ास है। आखिर इस क्षेत्र ने श्री राम और सीता का विवाह देखा है।
तैयार हैं आप मेरे साथ बिहार की शादी देखने के लिए। जानते हैं आखिर बिहार में शादी कैसे होती है।
दूल्हा-दुल्हिन खाएं भंवर संग कस्में ! Let’s enjoy बिहारी शादी की रस्में
Bihari wedding rituals जितने पूजा पाठ संग जुड़े हैं उतना ही इनमें हंसी मजाक का भी तालमेल है। In short, हंसी-ठहाकों और नाचने-गाने की कोई कमी नहीं है।
चलें श्री राम की विवाह स्थली पर बिहारी विवाह की रस्में देखने।
विवाह के पहले की रस्में
सत्यनारायण जी की कथा
भारत के अधिकाँश हिस्सों में विवाह रस्मों की शुरुआत गणपति आराधना से और समापन सत्यनारायण कथा से होता है। बिहार में विवाह की शुरुआत भी श्री सत्यनारायण कथा से होती है।
छेका
छेका रोका रस्म है। पारम्परिक तौर पर पहले लड़की पक्ष के लोग लड़के के घर उसका छेका कर शगुन देते हैं। उसके बाद वर पक्ष कन्या के घर उसका छेका कर शगुन देते हैं।
अब लोग कन्या के घर या बाहर दोनों का छेका एक ही जगह कर ring ceremony करते हैं।
हल्दी कुटाई
यह विवाह की हल्दी तैयार करने की रस्म है। सुहागिन स्त्री मिलकर हल्दी कूटती हैं और हल्दी के शुभ गीत गाती हैं। वो एक दूसरे को विशिष्ट अंदाज़ में सिन्दूर लगाती हैं। ये रस्म विवाह से पहले होती है और विवाह का कुछ भी सामान खरीदने से पहले हल्दी खरीदते और कूटते हैं।
मटकोर
दोनों पक्ष में माँ चावल, पान, सुपारी, पुष्प आदि से ढोलक या ढोल की पूजा करती हैं। घर की बेटियां फावड़े की पूजा करती हैं। फावड़े से कुछ मिटटी बेटियां और कुछ माँ निकालती हैं। इस मिटटी को उस पात्र में मिलाते हैं जिसमें मंडप का स्तम्भ गाड़ा जाएगा।
हल्दी
मटकोर के बाद घर में कन्या/वर को हल्दी लगाते हैं। ये रस्म विवाह के पांच दिन पहले से प्रारम्भ होती है। इसके बाद शादी तक रोज हल्दी लगती है और संगीत होता है।
तिलक और धनवटी
विवाह के एक दिन पहले कन्या का भाई लड़के के घर उसका तिलक कर शगुन देता है। पंडितजी कन्या पक्ष और वर पक्ष का धान मिलाकर दो हिस्सों में बाँटकर कपड़े में बांधते हैं। इसे धनवटी कहते हैं। दोनों की पोटली में दुसरे पक्ष की महिलाओं द्वारा कूटी गयी हल्दी बांधते हैं।
मंडप स्थापना
मंडप की स्थापना केले के पेड़ और बांस के प्रयोग से होती है। मंडप की छत बांधते हुए बाबा, चाचा, भैया की पीठ पर हल्दी के छापे लगाते हैं। बिहार की मैथिलि संस्कृति में आपको आज भी सोलह स्तम्भ का मंडप दिख जाएगा जो प्राय कहीं मिलता नहीं है।
मातृ पूजा
मंडप स्थापना के बाद मंडप पूजन होता है। इसमें सभी देवताओं को निमंत्रण देते हैं। घर की मुख्य महिला पितरों को एक मटके में आमंत्रित मटके को ढक देती है। इसी को मातृ पूजा कहते हैं। इस मटकी को लड़की के घर फेरों के समय और लड़के के घर नववधू के आगमन पर खोलते हैं।
शादी की रस्में
परिछावन और बारात प्रस्थान
बारात निकलने से पहले दूल्हे की माँ उसकी आरती उतारती हैं। जीवन के नए मार्ग पर निकलने से पहले तिलक कर उसकी पूर्ण चेतना जागृत करती हैं और नववधु को ख़ुशी ख़ुशी लेकर आने का आशीर्वाद देती हैं। इसी को परिछावन कहते हैं। इसके बाद धूम धाम से बारात प्रस्थान करती है।
जयमाला और गलसेदी
मंडप आगमन पर लड़की की माँ दूल्हे की आरती कर स्वागत करती हैं फिर बारात प्रवेश करती हैं। इसके बाद जयमाला की रस्म होती है। इसके बाद विशिष्ठ रस्म होती है गलसेदी। इसमें कन्या की माँ पान का पत्ता दिए की लौ पर जलाकर राख कर देती हैं। इस राख का टीका दूल्हे को वो लगाती हैं ताकि उसे किसी की नज़र न लगे।
कंगनबंधन, कन्यादान और भैसुर निरीक्षण
मंडप में मौली और आम पत्तों, चावल एवं अन्य कुछ वस्तुओं से बना कंगना पंडित जी लड़का एवं लड़की के हाथ में बांधते हैं। अब कन्या के पिता पुत्री का हाथ वर के हाथ में सौंपकर विधिवत कन्यादान करते हैं। कन्या का हाथ मिलने के बाद लड़के के बड़े भाई एवं पिता लड़की को गहने एवं कपड़े भेंट करते हैं। इसे भैसुर निरीक्षण कहते हैं।
फेरा
‘नदिया के पार’ का गाना सुना है क्या आपने, जब तक फेरे न हों पूरे सात तब तक दुल्हिन नहीं दूल्हा की। अब अग्नि के सात फेरे तो लेने होंगे तभी विवाह पूरा होगा। इसके बाद दोनों को पति पत्नी घोषित किया जायेगा।
विवाह के बाद की रस्में
कोहवर और सलामी विदाई
कोहबर बिहार की आकृति कला है। लड़की के घर पूजन वाले कमरे को कोहबर से सजाते हैं। फेरों के बाद इस कमरे में प्रवेश के लिए दूल्हे को छंद सुनाने होते हैं। घर की महिलाएं बेटी दामाद को खेल खिलाती हैं और फिर भोजन कराती हैं।
इसके होती है सलामी विदाई है अर्थात सभी बाराती लोगों को रुपयों का नेग देकर बारात को विदा करते हैं।
गृह प्रवेश
बिहार की रस्मों में आपको जगह जगह टोकरियाँ दिखाई देंगी जो अब बहू के स्वागत के समय फिर आएंगी। ज़मीन पर पैर न रखकर नवदम्पत्ति टोकरियों में कदम बढ़ाते हुए घर की दहलीज तक पहुँचते हैं। वहां माँ आरती करती हैं और बहु धान का कलश घर में धकेलते हुए आगे बढ़ती हैं। कुछ जगह वधु आलते की थाली में पैर रखकर प्रवेश करती है।
देव पूजन व मुँह दिखाई
पति पत्नी देवों की मटकी के सामने देव/पितरों को प्रणाम करते हैं। इसके बाद नयी वधु की मुंह दिखाई होती है। पहले घर के बड़े फिर अन्य सदस्य और फिर पड़ोसी वधु को देखकर उसको शगुन में रूपये या आभूषण देते हैं। इस समय वधु भजन सुनाती है नृत्य करके दिखाती है।
चौका छुलाई
चौका छुलाई नववधू की पहली रसोई की रस्म है। यहाँ वधु चूल्हे की पूजा कर पांच व्यंजन बनाती है या फिर आज के परिवेश में हल्वा भी बना सकती है। घर के बड़े भोजन कर वधु को आशीर्वाद और शगुन देते हैं।
सत्यनारायण जी की कथा
विवाह के मंगल पूर्ण संपन्न होने पर फिर सत्यनारायण जी की कथा होती है। इस बार यह पूजा उनका आभार व्यक्त करने के लिए होती है।
जान गए न अब आप कि बिहार की शादी में क्या रीती रिवाज़ होते हैं। आशा है आपको मेरा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। अपनी टिप्पणी और सुझाव मुझे comment section में अवश्य बताएं।

रस्म और रिवाज़ हैं, एक दूसरे के हमदम!
कलम से पहरा इनपर, रखती हूँ हर दम!