सनातन भूमि भारत के शीश में बसे हैं कश्मीरी। क्या आप कश्मीरी हिंदू शादी की रस्में जानना चाहते हैं ?
आज, मैं संस्कारी सुरभि,इस ब्लॉग में लाई हूँ कश्मीरी हिन्दू विवाह की रस्में।
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कश्मीरी हिन्दू शादी की रस्में | डेझोर संग अटठोर से बंधे खा विवाह की कसमें
दोस्त के कान में डेझोर और अटठोर देखकर मैंने उससे पूछा कि कश्मीरी शादी में क्या रस्में होती हैं ?
मेरे साथ आप भी जानिये कि कश्मीर में शादी कैसे होती है ?
विवाह से पहले की रस्में
कसमद्री – कश्मीरी सगाई की रस्म
दो परिवार मंदिर में रिश्ते की स्वीकृति देते हैं एक दूसरे को फूल देकर। कन्या पक्ष लड़के के घर शगुन संग मिश्री की मटकी (नाबद) भेजते हैं। बुआ दोनों घरों में वर (चावल की खीर) बनाकर बांटती हैं। आजकल अन्य प्रदेश के तर्ज़ पर यहाँ भी लड़का लड़की एक दूसरे को अंगूठी पहनाते हैं।
लिवुन और वनवुन
शादी के लिए घर को साफ़ कर लीपने की रस्म है लिवुन। आज बुआ खीर बनाकर सबमे बांटेंगी और शगुन पाएंगी। आज ही शादी के लिए भट्टी (वुर्र) चढ़ेगी जिसमें विवाह के लिए पकवान तैयार होंगे। शादी तक हर रात वनवुन अर्थात संगीत की रस्म होती है।
मन्ज़िरात – कश्मीरी मेहँदी रस्म
यह वर और कन्या के विशिष्ट स्नान की रस्म होती है जिसमें मौसी पैर धोती हैं। स्नान के बाद उसकी बुआ पैर और हाथ में मेहँदी लगाती हैं। आज भी मेहँदी का शगुन बुआ ही करती हैं। सभी स्त्रियों को बुआ मेहँदी देकर शगुन लेती है 🙂।
यज्ञोपवीत
सनातन धर्म में विवाह संस्कार यज्ञोपवीत (जनेऊ) संस्कार के बाद ही हो सकता है। अगर बाल्यावस्था में जनेऊ संस्कार नहीं हुआ है तो विवाह से पहले अवश्य होता है। फिर यहाँ तो विवाह ऋषि कश्यप की भूमि कश्मीर में हो रहा है।
देव गौण
यह देवताओं के आह्वान की रस्म है जिसमें सबसे पहले मामा पक्ष को आमंत्रित कर उनका स्वागत होता है।
स्वागत है माँ के मातामाल का
वाज़वान ने सजा दी है कश्मीरी दावत
पनीर,कश्मीरी दम आलू
लज़ीज़ हाख और नदरू
🙂 🙂
महादेव और गौरी माता से बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए घर के बड़े उपवास रख हवन पूजा करते हैं। सारणी में देखें इस रस्म में क्या होता है।
कन्या पक्ष वर पक्ष | |
कन्या का स्नान
मामा से मिले वस्त्र में कन्या तैयार है स्त्री धन की पूजा |
वर का स्नान
मामा से मिले वस्त्र में वर तैयार है हवं और पूजन होता है |
कन्या के माता पिता द्वारा दिए गए स्त्री धन में प्रमुख है डेझोर। (डेझोर स्वर्ण अष्टकोण है जिसे मौली या कलावे से कन्या के कान में ऊपर के विशिष्ट छिद्र में बाँधा जाता है। यह विवाहिता स्त्री के सौभाग्य का प्रतीक है जो अभी अधूरा है और ससुराल पहुँच कर पूर्ण होगा। 🙂
दिन कश्मीरी गठबंधन का
तैयारी बारात की
वर कन्या | |
फूफा वर को गोरदस्तर* बांधते हैं।
व्यूग** के पास धान और सिक्के के पात्र हैं। लड़के को माँ नाबद खिलाती हैं। |
दुल्हन लाल साड़ी में तैयार है।
बुआ लड़की की दो चोटियां बनाती है। चोटियों पर गोटा और सर पर तरंग*** बांधते हैं। |
*गोरदस्तर कश्मीरी पगड़ी है
**व्यूग द्वार पर बनी रंगोली है
***तरंग लाल टोपी है जिसमें कपड़े की कई परत होती है। सबसे ऊपर ज़री की सुनहरी परत होती है जिसपर साड़ी का पल्लू आता है।
शंखनाद के संग शान से बारात प्रस्थान करती है। उसी समय व्यूग पर रखे धान की मटकी गरीबों में दान करते हैं। कश्मीरी बारात ढोल संग नहीं बल्कि शंख की मंगल ध्वनि से पहुँचने का संदेश देती है। वर और कन्या के पिता एक दूसरे को जायफल देते हैं। यह उनके जीवन पर्यन्त निभाए जाने वाले रिश्ते और दोस्ती का प्रतीक है। आगमन पर दूल्हे की पूजा अर्चना कर आदरपूर्वक स्वागत किया जाता है।
द्वार पूजा
कन्या को मामा द्वार पर लाते हैं जहाँ व्यूग पर दूल्हा खड़ा है। लड़की की माँ दोनों की आरती उतारती हैं। माँ दोनों के सिर पर सुनहरी lace (मननमाल) बांधती हैं। व्यूग संग रखे धान के पात्र दान किये जाते हैं। पुरोहित द्वार पूजा कराते हैं। रिश्तेदार और बाराती भोजन करते हैं। इस वक्त तक लड़का लड़की एक दूसरे का चेहरा नहीं देखते।
कन्यादान और सप्तपदी
मंडप में शीशे में एक दुसरे का मुँह देखते हैं। बचपन से गोद में खिलाई हुई बिटिया को पिता फिर गोद में बैठाकर कन्यादान करते हैं। गठबंधन के लिए लड़का-लड़की एक दूसरे के दोनों हाथ पकड़ते हैं (अथवास) और फेरे लेते हैं चांदी के सात सिक्कों पर पैर रख कन्या नए गोत्र में प्रवेश करती है जहाँ बहू का स्वागत लड़के के पिता करते हैं।
क्या सप्तपदी में सिक्कों पर पैर रखना लक्ष्मी का अपमान नहीं?
कश्मीरी इस वक़्त बहू को साक्षात लक्ष्मी मानते हैं जो लक्ष्मी पर चलकर शुभ चरणों से उनके गोत्र, घर और जीवन में प्रवेश करती है। |
पौष पूजा और विदाई
दूल्हा दुल्हन के सर पर लाल चुनरी/ शॉल डालते हैं। उनको शिव पार्वती का रूप मान पुष्पवर्षा कर सब पौष पूजा करते हैं। इसके बाद दोनों एक दूसरे को खाना खिलाते हैं जिसे मुँह झूठा करना कहते हैं।
आ गई विदाई। दोनों को व्यूग पर खड़ा कर माँ नाबद खिलाकर आशीर्वाद देती है। लड़की मायके की खुशहाली के लिए धानवर्षा कर विदा होती है।
कुछ रस्में विवाह के बाद 🙂
गृह प्रवेश
लड़के के घर भी माँ व्यूग पर दोनों को खड़ा कर नाबद खिलाती हैं। यहाँ तक पहुँचने के लिए पहले उन्हें बहन और बुआ को शगुन देना है। माँ दोनों के मननमाल एक दूसरे से बदल देती हैं और रसोई में ले जाती हैं। यहाँ माँ बहू का घूंघट रसोई में खोल सबसे पहले देखती हैं पर बहू को एकदम सीधी नज़रों से देखना है सास को टेढ़ी नहीं 🙂।
बहू को सास की विशिष्ट मुँह दिखाई 🙂
माँ दोनों को दही चावल खिलाती हैं। सास बहू को अठ (कान के डेझोर के लिए सोने की Chain) और अठहोर (डेझोर में लगे रंग-बिरंगे चमकीले tussels) देती है। मैंने कहा था न कि अभी डेझोर पूरा नहीं हुआ है। कश्मीरी विवाहित स्त्री के सौभाग्य की पहचान, माँ के डेझोर और सास के अठहोर संग पूर्ण हो गया है।
सतरात Ceremony
मायके में फेरा डाल पिया संग पहली रात बिताने की रस्म है सतरात। इसके लिए पहले कन्या पति संग मायके फेरा डालने जाती है। लौटते समय माँ उपहार देती हैं जिसमें कश्मीर की शान पश्मीना शॉल भी शामिल होता है। इन रस्मों को निभाने के बाद दोनों एकांत में अपने मन की परत एक दूसरे के साथ खोलते हैं।
फिरलठ और रोठ खबर
अब अगले मंगलवार या शनिवार को लड़की के माता पिता उसके ससुराल एक traditional रोठ भेजते हैं। इस दिन का हर नवविवाहित लड़की बेसब्री से इंतजार करती है। जो रोठ लेकर आएगा वो उसे मायके लेकर जाएगा, वो भी कुछ दिन रहने के लिए। 🙂
गर अचुन
इतने दिन की रस्मों के बाद भी grand feast-reception अभी बाकी है। ससुराल पक्ष से मिले सारे गहने पहनकर लड़की जाती है मायके अपने ससुराल वालो के संग। वहां होती है शानदार Non-Veg दावत। शादी में तो सिर्फ शाकाहारी भोजन ही मिल सकता था फिर कश्मीरी रोगन जोश कब खिलाएंगे। 🙂
ये थी कश्मीरी शादी की परम्पराएं। आशा है आपको पता चल गया होगा कि कश्मीरी पंडित की शादी में क्या होता है? आपको मेरा ब्लॉग कैसा लगा, मुझे comment कर अवश्य बताएं। कोई त्रुटि लगे तो वह भी अवश्य बताएं।

रस्म और रिवाज़ हैं, एक दूसरे के हमदम!
कलम से पहरा इनपर, रखती हूँ हर दम!