शादी के बाद चूड़े का क्या करें ? आखिर इतने प्यार से मामा चूड़ा पहनाता है।
आपकी इस चिंता का निवारण आज मैं इस ब्लॉग में लेकर आई हूँ।

क्या आप जानना चाहेंगे
| शादी में दुल्हन के चूड़ा और कलीरे पहनने की अनोखी वजह |
शादी के बाद चूड़े का क्या करें ? जानें शुभ निशानी की प्रेमपूर्ण विदाई
शुभ कार्य से जुड़ी वस्तु का उचित निस्तारण है उसको बुरी शक्तियों से बचाकर प्रकृति को लौटा देना।
ब्लॉग में हम जानेंगे कि चूड़ा वढा कर उसका क्या करें और इससे जुड़े कुछ अन्य सवालों के जवाब।
शादी के बाद चूड़ा कितने दिन तक पहनना होता है ?
पंजाबी रिवाज़ के अनुसार शादी के बाद चूड़ा एक साल तक पहनना होता है। इतना लम्बा समय नहीं पहन सकते हैं तो कम से कम चालीस दिन तक चूड़ा जरूर पहनना चाहिए। इसके साथ ही नियम है कि अगर वधु एक साल के अंदर गर्भ धारण कर ले तो उस समय चूड़ा वढाया (उतारा ) जा सकता है।
चूड़ा वढाने की रस्म कैसे होती है ?
नन्द अपनी भाभी का चूड़ा वढ़ाती है। पात्र में पानी, छाछ और गुलाब की पत्तियां डालकर उसमें चूड़ा रखते हैं। सब वधु का मुँह मीठा करते हैं और शगुन देते हैं। इसके बाद पति कांच की चूड़ियां पहनाता है।
कुछ लोग यह रस्म घर में साधारण तरीके से करते हैं और कुछ पडोसी और रिश्तेदारों को बुला कर। घर को सजाकर मंगल गीत गाते हैं। पंजाबियों को जश्न मनाने का मौका जो मिला है।
वढाए हुए चूड़े का क्या करें
चूड़ा एक शुभ की वस्तु है और सुहाग की निशानी है। परम्परागत तरीके से इसका निस्तारण तभी संभव है जब यह artificial material से नहीं बना है। प्राचीन समय में artificial elements किसी भी शुभ सामग्री में प्रयोग होते ही नहीं थे।
जानते हैं प्रयोग हुई सामग्री के अनुसार, चूड़े का क्या करना है।
प्राकृतिक वस्तु से निर्मित चूड़ा
आप इस चूड़े को बहते पानी में बहा सकते हैं, पीपल या अन्य पूजनीय पेड़ के नीचे मिट्टी में ऐसी जगह दबा दें जहाँ उसे कोई खोद ना पाए ।
प्लास्टिक का बना चूड़ा
यह प्राकृतिक तत्वों में प्रवाहित नहीं हो सकता है। आप इसको यादगार स्वरूप सुन्दर से बॉक्स में विवाह के लहंगे या अन्य वस्तुओं संग संभाल कर रखें।
एक सन्देश
जब आप रीती रिवाज़ों की तरफ मुख कर ही रहे हैं तो इन रस्मों को खुले मस्तिष्क से समझना आवश्यक है। हम अगर चूड़े को पूरी विधि के साथ तरीके से प्रवाहित करना चाहते हैं तो हमें ये खरीदते वक़्त भी ध्यान में रखना होगा।
अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए और अपने लिए इन शुभ कार्यों से प्लास्टिक को हटाना होगा। तभी रस्मों को सही प्रकार से करना संभव होगा।
यह था मेरा ब्लॉग। मुझे comment section में बताएं कि आपको यह कैसा लगा।

रस्म और रिवाज़ हैं, एक दूसरे के हमदम!
कलम से पहरा इनपर, रखती हूँ हर दम!