जहाँ डांडिया की मस्ती है और गरबे में सजा है रास, ऐसा ही है रंगीला गुजरात। कभी सोचा आपने कि इस रंगीली मिट्टी में गुजराती शादी की रस्में कैसे निभाई जाती हैं।
अब no more मस्ती मजाक! गुजरात में शादी कैसे की जाती है, देखते हैं आज। 🙂
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रंगीली गुजराती शादी की रस्में चार फेरों में खाई जीवन भर की कसमें
भारत में जैसे हर राज्य में मिट्टी का रंग बदल जाता है वैसे ही बदलता है इसकी संस्कृति का भी रंग। इसी मिट्टी से निकाल कर लाई हूँ आज में गुजराती विवाह की रस्में।
आगे इन रस्मों को जानने का प्रयास करते हैं।
गुजराती विवाह से पहले की रस्में
सवा रुपया
सवा रुपया ठाकुर जी मतलब कान्हा जी के सामने को साक्षी मानकर वर और कन्या का रिश्ता पक्का करने की रस्म है। यह रस्म सामान्यतः मंदिर में दोनों को सवा रुपया देकर निभाई जाती है।
गुड़ दाना एवं चांदलो मतली
गुजराती शब्द चांदलो का अर्थ है तिलक। लड़की के घर से उसके पिता या अन्य वयस्क पुरुष लड़के का तिलक कर शगुन देते हैं। साथ ही शादी और सगाई की तारीख भी पक्की की जाती है।
शगुन के तौर पर सभी मेहमानों को गुड़ और धनिये के बीज बांटे जाते हैं। यह हो जाती है गुड़ दाना की रस्म।
सगाई
सगाई भी तिलक की रस्म है। लड़की का भाई पंडितजी द्वारा मंत्रोच्चारण संग लड़के का तिलक करता है और श्रीफल (नारियल) संग मूंग के कुछ दाने देता है।
वर पक्ष की महिलाएं कन्या का तिलक कर गोद में श्रीफल देती हैं और सिर पर घरचोला साड़ी ओढ़ाती हैं। लड़के की चाची या बहन कन्या को पायल पहनाती हैं। लड़का लड़की एक दूसरे को अंगूठी पहनाते हैं।
शादी के दिन रस्में
मेहंदी और सांजी
गुजरात में मेहंदी शादी से एक दिन नहीं बल्कि दो दिन पहले निभाई जाती है। शाम को सांजी मेहंदी रस्म के साथ साथ ही चलती है। सांजी और कुछ नहीं विवाह के मंगल गीत ही हैं। संगीत का नाम गुजरात में आया है तो गरबा तो होगा ही।
पिठी या हल्दी रस्म
इस रस्म में दूल्हा और दुल्हन दोनों को हल्दी, चंदन, गुलाब जल का लेप लगता है। मूलतः ये रस्म दोनों अपने अपने घर में करते हैं।
मामेरू मोसालू
शादी के एक दिन पहले दुल्हन के मामा का भव्य स्वागत होता है जिसे मामेरू मोसालू कहते हैं। मामा अपनी सामर्थ्य के अनुसार दुल्हन अर्थात अपनी भांजी के लिए पनेतर साड़ी, चूड़ियां एवं अन्य उपहार लाता हैं।
मंगल मुहूर्त और शांति पूजा
मंगल मुहूर्त को आप मंडप पूजन भी कह सकते हैं। मंडप लड़की के घर होता है इसीलिए दोनों के घर इस रस्म का स्वरुप भिन्न है। यह रस्म पंडितजी कराते हैं। कन्या के घर मंडप स्थान पर धरती पूजन और फिर स्तम्भ पूजन होता है। इसी समय गणेश पूजन और नवग्रह पूजन भी होता है।
लड़के के घर मंडप नहीं है पर बांस का छोटा सा स्तम्भ गाड़कर उसकी पूजा होती है। साथ ही गणेश पूजन और नवग्रह शान्ति पूजन होता है। इसी समय पंडितजी लड़का एवं लड़की को हाथ में नाड़ा छड़ी (कंगना / सांकड़ी राखी) बांधते हैं।
परछावन और बारात या वरघोड़ा
मौका है दूल्हे के मंडप प्रस्थान का। दूल्हे की बहन कपड़े में कुछ सिक्के बांधकर भाई के सर से घुमाकर नज़र उतारती है जिसके बाद लड़का घर से बाहर निकलता है। ये सिक्के गरीबों में बाँटे जाते हैं। इस रस्म को परछावन कहते हैं। घोड़ी पर चढ़ने से पहले दूल्हे की माँ उसकी आरती उतारती है। अब घोड़ी पर सवार बांका दूल्हा चला है गाने बाजे के संग अपनी दुल्हनिया लेने।
जान रस्म और पौंखनू
दूल्हे का मंडप में स्वागत होने वाली सास करती हैं आरती कर दूल्हे की नाक पकड़ कर। भारत में बहुत सी जगह दामाद को सिर पर बैठाया जाता है वहीं गुजरात में विवाह की यह रस्म सास को माँ का हक़ देती है।
मंडप प्रवेश से पहले वो श्रीफल और पानी के कलश से अपने दामाद की नज़र उतारती हैं।
अंतर पात
कन्या को मंडप में उसके मामा गोद में लाते हैं क्यूंकि वो धरती पर पैर नहीं रखती। ऐसा न हो सके तो ममेरे भाई अपनी हथेली कन्या के मार्ग में बिछाते जाते हैं और उसपर कदम बढ़ाते हुए कन्या मंडप पहुँचती है। ये लोकाचार रस्में हैं जो सबकी अपनी अपनी होती हैं।
मंडप में वर और कन्या के बीच चादर होती है जो अंतर पात है। मंत्रोच्चार के बीच चादर हटाते हैं और दोनों एक दूसरे वरमाला पहनाते हैं।
हस्तमिलाप और कन्यादान
कन्या के पिता वर से कन्या की भली भांति देखभाल करने का वचन लेकर उसका हाथ वर के हाथ में दे हस्तमिलाप की रस्म करते हैं और फिर कन्यादान की रस्म निभाते हैं। अब वर और कन्या का गठबंधन होता है। पंडितजी वर वधु के गले में एक लम्बी माला डालते हैं जिसके अंदर रहकर दोनों फेरे लेते हैं।
फेरे एवं सप्तपदी
गुजरात के कुछ हिस्सों में चार फेरे होते हैं। कभी सोचा आपने कि गुजराती शादियों में केवल 4 फेरे क्यों होते हैं। ये फेरे गृहस्थ की गाड़ी को चलाने वाले चार पहियों को आधार मानकर लिए जाते हैं। ये पहिये हैं धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। गुजरात के ही कुछ हिस्सों में सात फेरे भी होते हैं जैसे अन्य राज्यों में होते हैं।
फेरों के साथ ही ग्रहस्थी की गाड़ी को नियंत्रित रखने वाले सात वचन लिए और दिए जाते हैं और सप्तपदी की विधिवत पूजा संपन्न होती है। लड़का लड़की की मांग में सिन्दूर दान करता है और मंगलसूत्र पहनाता है। दोनों पति पत्नी ईश्वर से मंगलमय जीवन की कामना करते हैं।
जूता चोरी और विदाई
जूता छिपाना और शगुन लेना उत्तर भारत की सभी सालियों का अधिकार है, फिर गुजरात में पीछे कैसे रह सकती हैं। 🙂 वैसे फेरों की रस्म के दौरान ही सालियाँ अपने जीजा की जूतियाँ चुरा लेती हैं।
सौभाग्यवती भव
तीन सुहागन औरतें कन्या पक्ष से और तीन ही वर पक्ष से नव विवाहित पति पत्नी को आशीर्वाद देती हैं। ये औरतें वधु के कान में सौभाग्यवती भवः का आशीर्वाद देती हैं।
चेरो पकरयो
यह रस्म है दामाद की अपनी सासू मां से थोड़ा शगुन वसूलने की। दामाद सास का पल्ला पकड़ कर बैठ जाता है और उनसे शगुन व उपहार माँगता है। यह देखकर सभी लड़की पक्ष के लोग लड़की की माँ की गोद में शगुन डालते हैं जो एकत्रित कर वर पक्ष को दिया जाता है। यह रस्म भी गुजरात के सब हिस्सों में नहीं निभाई जाती है।
विदाई
घर की रानी बिटिया आंसुओं संग विदा होते अपने भाई की बलाएं ले उसकी नज़र उतार कर जाती है। विदा होते समय माँ कलश और श्रीफल (नारियल) से गाड़ी के अगले पहिये की नज़र उतारती हैं और उसके आगे नारियल रखती हैं।
शादी के बाद की रस्में
गृह प्रवेश या घर नू लक्ष्मी
वधु का गृह प्रवेश पति के साथ ही होता है। नन्द भाई-भाभी की आरती उतारती हैं और उनका मुँह मीठा कराती है। घर की लक्ष्मी जब पहला कदम घर में रखती है तब कुमकुम लगे उसके शुभ क़दमों की छाप हमेशा के लिए सफ़ेद कपड़ो में संजो कर रख ली जाती है।
एकी बेकी या कौड़ी खेलना
रिश्तों की तह खोलती यह हंसी मजाक की रस्म है। लड़का लड़की एक दूसरे के हाथ से नाड़ा छड़ी खोलते हैं और उसे परात में पानी और दूध के मिश्रण में डाल देते हैं। पानी में गुलाब की पत्तियों संग दूब घास और अंगूठी होती है। प्रतिस्पर्धा हैं कि कौन अंगूठी पहले ढूंढ के निकालेगा। 🙂
पग फेरा
पगफेरा, विवाह के दूसरे दिन कन्या के मायके में माँ बाबा से मिलने जाने की रस्म है। बिटिया हर घर की लक्ष्मी है और लक्ष्मी को कौन यूँ ही विदा कर सकता है।
ये थी गुजराती विवाह की रस्में। मुझे उम्मीद है आपको मेरा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। अपने सुझाव और टिप्पणियां comment section में अवश्य बताएँ।

रस्म और रिवाज़ हैं, एक दूसरे के हमदम!
कलम से पहरा इनपर, रखती हूँ हर दम!