चार धाम की यात्रा उड़ीसा के बिना पूरी नहीं होती और विवाह के बिना जीवन के संस्कार। चलें क्या जगन्नाथ धाम ओड़िया शादी की रस्में जानने।
ब्लॉग में आगे जानें ओड़िसा में शादी कैसे होती है।
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निरबंद से अष्ट मंगला तक सादगी से भरी ओड़िया शादी की रस्में
उड़ीसा जगन्नाथ मंदिर के लिए प्रचलित है वहीं यह अपनी सादगी भरे जीवन के लिए भी मशहूर है। यहाँ विवाह में भी इस सादगी की साफ़ झलकी मिलती है।
मेरे साथ चलिए ओड़िसा विवाह की जात्रा पर 🙂।
विवाह के पहले की रस्में
निरबंद
रिश्ता पक्का होने पर लड़का लड़की एवं उनके बंधुजन किसी मंदिर या घर में मिलते हैं। वहां कन्या पक्ष के लोग लड़के का तिलक कर शगुन आदि देते हैं। दूसरी ओर लड़का पक्ष कन्या का तिलक कर उसे शगुन देता है। इसके बाद दोनों एक दूसरे को अंगूठी पहनाते हैं। अब विवाह का दिन पक्का किया जाता है।
जयई अनुकूलो
तारीख पक्की कर अब निमंत्रण पत्र भी तैयार हैं। ओड़िसा में विवाह का पहला निमंत्रण गणपति जी को नहीं बल्कि ओड़िसा के नाथ जगन्नाथ जी को जाता है। इस निमंत्रण के साथ हल्दी और सुपारी भी जाती है। यही है जयई अनुकूलो। अब निमंत्रण कन्या या वर के मामा पक्ष को उसके बाद अन्य रिश्तेदारों को जाता है।
जयरागोडो अनुकोलो
यह हल्दी और मंगोड़ी तैयार करने की रस्म है। सात सुहागनें सिल बट्टे को हल्दी कुमकुम लगाकर उसकी पूजा करती है और इसमें हल्दी पीसकर तैयार करती हैं। इसी रस्म में मूंग दाल को पीसकर उससे मंगोड़ी (बड़ी) बनाती हैं जिसे कन्या शादी के बाद अपने साथ लेकर जाती है।
शादी के दिन रस्में
मंगन
शादी के दिन अथवा एक दिन पहले सात सुहागन स्त्री वर अथवा कन्या को हल्दी लगाती हैं और उसके बाद स्नान कराती हैं। ओड़िसा में रिवाज़ है कि हल्दी लगने के बाद अगर दुर्भाग्यवश विवाह टूट जाए तब भी कन्या का विवाह तय मुहूर्त में होगा अवश्य। इस भय से अब लोग हल्दी विवाह के दिन ही लगाते हैं।
दिया मंगला पूजा
इस रस्म को अन्य भारत में गौरी पूजन कहते हैं। यहाँ शादी का जोड़ा, बिछिया, चूड़ियाँ, सिन्दूर आदि सुहाग की निशानियों को देवी के मंदिर में रखते हैं। यह सुहाग की इन निशानियों पर अटल सुहाग का आशीष मांगने की रस्म है।
नंदीमुख
यह पूर्वजों की पूजा अर्चना कर उनका आह्वान करने की रस्म है। यह कन्या एवं वर पक्ष दोनों के घर पर उनके पिता निभाते हैं। पूर्वजों से बच्चों के सुखमय भविष्य की प्रार्थना की जाती है।
बरधरा
यह लड़का पक्ष को बारात लाने का निमंत्रण देने की रस्म है। लड़की का भाई या मामा निमंत्रण पत्र के संग हल्दी एवं सुपारी बहन/ भांजी के भावी ससुराल पक्ष के यहाँ ले जाता है। वह इच्छानुसार अपने साथ कुछ उपहार, गहने या शगुन भी ले जाता है।
बरजात्री
वर के संग आये यात्रियों का समूह अर्थात बारात ही बरजात्रि है। दुल्हन पक्ष के पुरुष सदस्यों का समूह बारात को लाने विवाह स्थल के प्रवेश पर जाता है। प्रवेश द्वार पर कन्या की माँ अथवा अन्य वरिष्ठ महिला दूल्हे की आरती कर उसका तिलक करती हैं। मंडप प्रवेश के पहले दूल्हे के पग नारियल के पानी से धोकर उसे पंचामृत पिलाते हैं।
बाडुअ पानी गाधूआ
बारात के आगमन पर दुल्हन को सूचना देकर विशेष स्नान के लिए ले जाते हैं। इसे बाडुअ पानी गाधुआ स्नान कहते हैं। दिया मंगला पूजा में जिस जल से माँ गौरी को स्नान कराया गया था उसमें से कुछ पानी बचाकर लाते हैं। उसी जल से दुल्हन स्नान कर विवाह के लिए तैयार होती है।
कन्यादान और हठ ग्रंथि फिट्टा
दुल्हन के मंडप आगमन पर सर्वप्रथम दूल्हे से कन्या के सम्मान पूर्ण भरण पोषण का वचन लेकर कन्या के पिता कन्यादान करते हैं। इसी अवस्था में दुल्हन के पिता दोनों के हाथों को आम पत्तियों की माला से बांध देते हैं। इस गाँठ को दुल्हन की बहन खोलती है वो भी वर पक्ष से शगुन लेकर। खोलने को ही उड़िया भाषा में फिट्टा कहते हैं।
सप्तपदी और लाजा होम
मंत्रोच्चारण के मध्य वर एवं कन्या विवाह के सात वचन देकर अग्नि के सात फेरे लेते हैं। यह है सप्तपदी। उसके बाद लाजा होम, होम (हवन) में लाजा (खील) डालने की रस्म है। यह खील दुल्हन का भाई दुल्हन को और फिर वो दूल्हे को देती हैं । इसके बाद यह अग्नि देव को अर्पित की जाती है।
सिन्दूर दान
पहले दूल्हा और दुल्हन मंडप के बाहर जाकर ध्रुव तारा देखते हैं। इसके बाद वर कन्या की मांग में सिंदूर भरता है और उसको चूड़ियाँ पहनाता है। इसके बाद दोनों को पति पत्नी घोषित किया जाता है।
विवाह उपरांत रस्में
कौड़ी खेला
समुद्र किनारे बसे उड़ीसा की ये रस्म समुद्र में पायी जाने वाली कौड़ी से जुड़ी है। यह रस्म एक खेल है। विवाह उपरांत दूल्हा दुल्हन की थकान कम करने के लिए अंदर ले जाकर उन्हें कौड़ी खिलाया जाता है। दूल्हे की मुट्ठी से दुल्हन को कौड़ी को हासिल करना है 🙂।
सासू दही और बाहुना
सासु दही! नाम ही कह रहा है कि अब सास दामाद को दही खिलाएंगी। ख़ास बात है कि दही अपनी गोद में बिठाकर खिलाई जाएगी । वैसे ये रस्में उस समय से चली आ रही है जब विवाह बाल्यपन में हो जाता था।
इसके बाद विदाई की रस्म होती है जिसमें कुछ कुछ जगह विवाह में लड़की की माँ बाहुना गीत गाती हैं । यह ओड़िसा का पारम्परिक गीत है जिसमें माँ बेटी को दुनिया में लाने तक उठाए कष्ट सुनाती है।
गृह प्रवेश
गृह प्रवेश नवविवाहित जोड़ी की लड़के के घर प्रवेश की रस्म है। लड़के की माँ अपनी नई बहू और बेटे का खुले दिल और आरती संग स्वागत करती हैं।
घर की लक्ष्मी घर की देहरी पर रखा चावल का कलश घर के अंदर पलटते हुए प्रवेश करती है।
चौथा / बाशरा राती
बाशरा राती शादी के दिन से चौथी रात्रि होती है। यह पति पत्नी के मिलन की रात है। इस दिन घर में हवं होता है जिसमें नारियल को पति पत्नी के कमरे में भूनते हैं। भुने हुए नारियल की खुशबू से पूरा कमरा सुगन्धित हो जाता है। ये नारियल नवविवाहित जोड़ी खाती है।
रात को वधू अपने पति को केसर का दूध पिलाती है। हवन के बाद उनके पलंग पर जलता हुआ दिया रखा जाता है।
अष्ट मंगला
अष्ट मंगला विवाह के आठवें दिन होती है। इस दिन लड़की के माता पिता दामाद को खाने पर आमंत्रित करते हैं। वहाँ उनका नाना व्यंजनों के संग स्वागत होता है। इसके साथ ओडिया शादी की रस्मों को सम्पन्न माना जाता है।
ये थी ओडिशा की शादी की रस्में। मैंने पूरा प्रयत्न किया है की ब्लॉग पढ़कर आपको पूर्ण विवाह की झलकी महसूस हो सके। अगर मैं ऐसा कर पाई हूँ तो मुझे comment section में ज़रूर बताएँ ।

रस्म और रिवाज़ हैं, एक दूसरे के हमदम!
कलम से पहरा इनपर, रखती हूँ हर दम!