जब शादी सुनिश्चित हो जाये तब ख्याल आता है कि शादी में कौन कौन सी रस्में होती है ।
जानते हैं फिर, संस्कारी सुरभि की कलम से भारतीय शादी की रस्में।

Let’s explore शादी में कौन कौन सी रस्में होती है
सनातनी घर में विवाह हो तो हिन्दू विवाह की मुख्य रस्में जानने और निभाने की खुलबुली मच जाती है।
बिना समय व्यर्थ किए जानते हैं विवाह की रस्में।
विवाह पूर्व रस्में
भात निमंत्रण
उत्तर भारत की यह रस्म ननिहाल पक्ष को शादी का निमंत्रण देने की रस्म है। रस्में प्रारंभ करने से पहले माँ, घर की औरतों के संग अपने भाई को निमंत्रण देने जाती हैं।
वहां सब की खातिरदारी संग संगीत का कार्यक्रम होता है।
थापा और हल्दी हाथ
शादी की रस्मों की शुरुआत होती हैं जब घर में लड़का/ लड़की के शादी का थापा मतलब प्रजापति देव (विवाह के देवता) का चित्र लग जाता है। यहीं सात सुहागिनों को मौली बांधते हैं जो हल्दी हाथ की रस्म अदा करती हैं।
इसके बाद लड़का/ लड़की को हल्द हाथ की रस्म कर हल्दी तेल लगता है।
मेहंदी रात संग जग्गो
विवाह से एक दिन पूर्व मेहँदी की रस्म होती है जिसमें लड़की/ लड़के को मेहँदी लगती है। सभी रात भर जागकर नाचते गाते हैं, ढोलक बजाते हैं और जश्न मनाते हैं।
पंजाब प्रांत में मेहँदी के बाद ही जग्गो की रस्म भी होती है।
शादी के दिन रस्में
पवित्र जल भरकर लाने की रस्म
विवाह के दिन घर की औरतें सूरज उगने से पहले मंदिर के कुएँ या नल से जल भरकर लाती हैं। वापिस आते हुए सब ढोलक संग गीत गाते हुए आते हैं।
हल्दी बान और पवित्र स्नान
शादी के दिन भी हल्दी तेल की रस्म होती है। फर्क है की शादी वाले दिन तेल चढ़ाया नहीं उतारा जाता है। इसके बाद सुबह मंदिर के कुएं से लाये गए पवित्र जल से दूल्हा/दुल्हन स्नान करते हैं।
मंढा, लग्न पत्रिका और कंगना बंधाई
विवाह के दिन पुरोहित कन्या/वर से मंडप पूजन (मंढा) कराते है और हाथ में रक्षा सूत्र (कंगना) बांधते हैं। इसी समय पंडित लग्न पत्रिका (पीली चिट्ठी) में विवाह का मुहूर्त लिखते हैं जिसे कन्या का भाई वर पक्ष को तय मुहूर्त पर आने का निमंत्रण स्वरूप देकर आता है।
भात
कन्या/ वर के मामा पक्ष भात लेकर घर में प्रवेश करते हैं। माँ अपने भाई भाभी का स्वागत आरती और तिलक से करती है। ननिहाल पक्ष का शगुन इसी समय दिया जाता है। घर की औरतें भात के मंगल गीत गाती हैं।
चूड़ा/कलीरे
पंजाब प्रांत में मामा लड़की का चूड़ा लाते हैं और खुद पहनाते हैं। इस समय लड़की की माँ उसकी आँखें बंद करती हैं। चूड़े को पहनाकर उसे लाल कपड़े में बंद कर दिया जाता है। लड़की की बहन और सहेलियाँ चूड़े में कलीरे बांधती हैं।
गौरी पूजन (कन्या)
दुल्हन की मामियाँ पैरों में बिछिया (Toe Rings) और पायल पहनाती हैं। इसके बाद घर की औरतें कन्या के सिर पर चुनरी लेकर गौरी माँ के गीत गाते हुए मंदिर ले जाती हैं। कन्या गौरी माता का श्रृंगार और पूजन कर उनसे अटल सुहाग का वर मांगती हैं। इसके बाद ही वो दुल्हन का जोड़ा पहन दुल्हन बनती है।
चढ़त और बारात प्रस्थान (वर)
दूल्हे के घर भाभी दूल्हे को काजल लगाती हैं जीजा और उसे तैयार कर घोड़ी चढ़ाते हैं। घुड़चढ़ी के पहले बहनें घोड़ी को चने का भोग खिलाती हैं। दूल्हा पहले मंदिर तक जाकर दर्शन करता है। इसके बाद घर में दूल्हे का प्रवेश विवाह कर दुल्हन के संग ही होता है।
विवाह समारोह की रस्में
बारात सत्कार
दुल्हन की भाभी अथवा माँ चौकी पर दूल्हे को खड़ा कर तिलक-आरती करती हैं और आदरपूर्वक प्रवेश कराती हैं। इसके बाद कन्यापक्ष दूल्हे संग बारात का स्वागत करता है। कुछ जगह सास दामाद की नाक पकड़कर अंदर लाती है। हंसी हंसी में यह स्थापित हो जाता है कि सास भी माँ की तरह ही है।
खेत और वरमाला
विवाह स्थल पर वरमाला के नियत स्थान पर दूल्हा पंडित के संग खेत की रस्म/ द्वार पूजन करता है। इसके बाद दुल्हन का आगमन और फिर वरमाला की रस्म होती है।
सप्तपदी रस्म
वरमाला के बाद फेरे या सप्तपदी के सात वचन होते हैं। वचनों का आदान प्रदान कर दूल्हा दुल्हन अग्नि को साक्षी मान सात फेरे लेते हैं। इसी के पूरा होने पर वधु को वर का बायां अंग माना जाता है और वो पति पत्नी कहलाते हैं।
विवाह उपरांत रस्में
थापा पूजन, तिलक और जूता चुराई
नवविवाहित जोड़ा अब लड़की के थापे की पूजा करते हैं। इसके बाद कन्या की माँ एवं घर की औरतें दामाद अर्थात वर का तिलक करती हैं। इसी समय सालियाँ दूल्हे के जूते चुराती हैं और शगुन लेकर लौटाती हैं।
विदाई
भारी मन से बेटी की खुशियों की प्रार्थना करते माता पिता कन्या को विदा करते हैं। विदा लेते हुए कन्या माँ से धान लेकर अपने पीछे मायके में सौभाग्य स्वरूप वर्षा करती जाती है।
नववधु का स्वागत
बहन अपने भाई और भाभी की आरती कर घर में स्वागत करती है। लक्ष्मी रूपा नववधू सौभाग्य स्वरूप चावल का कलश पैर से अंदर गिराते हुए आती है। कुछ जगह महावर की थाली में पैर रख बहू आगे बढ़ती है जहाँ सफ़ेद कपड़े में लक्ष्मी के चरण हमेशा के लिए संजो लिए जाते हैं।
कंगना और सेजरात
नवदम्पत्ति एक दूसरे के हाथ का कंगना खोलते हैं। ये समय है मन की संकोच भरी गांठें खोलने का। इसके लिए कंगना के साथ एक अंगूठी को परात में दूध पानी के मिश्रण में दूब घास संग डाल खेल खिलाया जाता है। ये रस्में निभाने के बाद ही पति पत्नी का मिलन होता है, जी सेज या सुहाग रात।
पगफेरे की रस्म
अगले दिन लड़की का भाई लड़की को पग फेरे की रस्म के लिए लेकर जाता है। वहां भी लड़की की आरती कर स्वागत होता है और उसके पैर धुलाये जाते हैं। उचित दिन समय देखकर या उसी दिन लड़की का पति उसे वापिस ले जाने आता है।
ये थी विवाह समारोह की रस्में। ये वैवाहिक रस्में हर कोस और हर घाट पर बदल जाती हैं। मुख्यतः उत्तर भारत में शादी विवाह के रीति रिवाज़ यही होते हैं। कुछ रस्में वैदिक विवाह संस्कार विधि के अनुरूप हैं तो कुछ हंसी मजाक संग रिवाज़ बन जुड़ती चली आई हैं।
आपके यहाँ इनमें से कुछ रस्में भिन्न हों तो मुझे अवश्य बतायें कि आपके यहाँ शादी में कौन कौन से फंक्शन होते हैं 🙂।

रस्म और रिवाज़ हैं, एक दूसरे के हमदम!
कलम से पहरा इनपर, रखती हूँ हर दम!