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विवाह का ख्याल आते ही जान लेना चाहिए कि फेरों में सात वचन क्या हैं ? आखिर सप्तपदी के सात वचन ही तो वैदिक विवाह के अनुबंध का आधार हैं।

ब्लॉग में जानते हैं विवाह के सात वचन ।     

फेरों में सात वचन क्या हैं

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फेरों में सात वचन क्या हैं ? मंत्र और अर्थ संग समझिये प्रत्येक वचन 

विवाह अगर कानूनी अनुबंध है तो वैदिक विवाह के सात वचन इस अनुबंध के मूल नियम हैं। 

आप भी इस अनुबंध में बंधने के इच्छुक हैं तो जानते हैं शादी के सात फेरों के वचन मंत्र और अर्थ। 

 

कन्या के वर से मांगे गए सात वचन 

कहा जाता है कि भारतीय सभ्यता में नारी पिछड़ी हुई है। जबकि हमारी संस्कार विधि विवाह में फेरों के समय सात वचन मांगने का पहला हक़ कन्या को देती है।         

 

कन्या का वर से माँगा गया पहला वचन

तीर्थ व्रतोद्यापन यज्ञदानं मया सहत्वं यदि किन्न कुर्याः | 

वामांगमायामि तदात्वादियं नत्वन्यथा दक्षिणपार्श्वतोहम ||  

अर्थात 

आप जब भी कभी किसी तीर्थ पर जाएंगे, किसी व्रत का उद्यापन करेंगे या यज्ञ-दान आदि करेंगे तब मैं ही आपकी सहभागी रहूंगी। अतः आज मैं वाम अंग आउंगी तो सदैव आपके हर धर्म के कार्य में आपके वाम अंग में साथ रहूंगी। अगर यह वचन आप मुझे देंगे तो मैं आपके वाम अंग (उल्टा हाथ) बैठने के लिए तैयार हूँ।       

 

कन्या का वर से माँगा गया दूसरा वचन  

हव्यप्रदानैरमरान पितृंश्च कव्यप्रदानैर्यदि पूजयेथा | 

वामांगमायामि तदात्वदीयं नत्वन्यथादक्षिणपार्श्वतोहम ||

अर्थात 

जिस प्रकार आप अपने माता पिता का सम्मान करते हैं उसी प्रकार आप मेरे माता पिता का भी यथा उचित सम्मान करेंगे। उन्हें अपने माता पिता तुल्य ही स्थान देंगे। यदि आप मुझे ऐसा वचन देते हैं तब मैं आपके वामांग (बायीं तरफ) आने के लिए तैयार हूँ अन्यथा मैं दायीं ओर ही ठीक हूँ।      

 

कन्या का वर से माँगा गया तीसरा वचन  

कुटुम्ब रक्षा भरणेयदि त्वं कुर्यात पशूनां परिपालनं च | 

वामाङ्गमायामि तदा त्वदीयं नत्वन्यथा दक्षिण पार्श्वतोहम|| 

अर्थात 

अभी आप परिवार के कर्तव्यों से निश्चिन्त थे परन्तु अब हम गृहस्थ निर्माण करने जा रहे हैं। ऐसे में परिवार की रक्षा एवं भरण पोषण के लिए, घर में पशुओं के पालन पोषण का भार उठाने में यदि आप समर्थ हैं और ऐसा करने का मुझे वचन देते हैं तब मैं आपके वामांग (बायीं तरफ) आने के लिए तैयार हूँ अन्यथा मैं दायीं ओर ही ठीक हूँ।     

 

कन्या का वर से माँगा गया चौथा वचन  

आयव्ययौ धान्य धना दिकानां पृष्टवा निवेशंच गृहेनिदध्याः | 

वामाङ्गमायामि तदा त्वदीयं नत्वन्यथा दक्षिण पार्श्वतोहम || 

अर्थात 

क्या आप मुझे वचन देते हैं कि, अपनी आमदनी को खर्च करते समय, अनाज को बेचते समय (आज के परिवेश में कुछ भी खरीदते बेचते समय), अथवा घर इत्यादि में निवेश करते समय मेरी सहमति लेंगे? अगर आप ऐसा करते हैं तब मैं आपके वामांग (बायीं तरफ) आने के लिए तैयार हूँ अन्यथा मैं दायीं ओर ही ठीक हूँ।      

   

कन्या का वर से माँगा गया पांचवा वचन  

देवालयाराम तडाग कूप वापिर्विदध्याः यदि पूजयेथा | 

वामाङ्गमायामि तदा त्वदीयं नत्वन्यथा दक्षिणपार्श्वतोहम || 

अर्थात 

किसी मंदिर, तालाब, कुएं का निर्माण कार्य यदि आप करेंगे तो उसमें मेरी सहमति भी सम्मिलित होगी। अगर आप यह वचन मुझे देते हैं तब मैं आपके वामांग (बायीं तरफ) आने के लिए तैयार हूँ अन्यथा मैं दायीं ओर ही ठीक हूँ।      

   

कन्या का वर से माँगा गया छठा वचन  

देशान्तरे वा स्वपुरांतरे वा यदा विदध्याः क्रयविक्रयोत्वम| 

वामाग्रमायामि तदा त्वदीयं नत्वन्यथा दक्षिणपार्श्वतोहम || 

अर्थात 

देश या प्रान्त के बाहर जब भी आप कोई भी क्रय विक्रय अर्थात कुछ खरीदेंगे या बेचेंगे तब उसमें मेरी भी सहमति होगी। यदि आप ऐसा करने का वचन देते हैं तब मैं आपके वामांग (बायीं तरफ) आने के लिए तैयार हूँ अन्यथा मैं दायीं ओर ही ठीक हूँ।      

 

कन्या का वर से मांगा गया सातवा वचन  

न सेवनीया परपारकीया त्वया भवोद्भविनिकामिनीति | 

वामाङ्गमायामि तदा त्वदीयं नत्वन्यथा दक्षिणपार्श्वतोहम || 

अर्थात 

आप किसी भी पराई स्त्री को माँ अथवा बहन के भाव में देखेंगे। यदि आप मुझे ऐसा वचन देते हैं तब मैं आपके वामांग (बायीं तरफ) आने के लिए तैयार हूँ अन्यथा मैं दायीं ओर ही ठीक हूँ।      

 

वर के कन्या से मांगे गए वचन 

ये थे कन्या के सात वचन जो कन्या वर से लेती है। वचन देने के बाद वर भी कन्या से कुछ वचन लेता है जानते हैं वर के द्वारा मांगे गए वचन।

 

वर का कन्या से माँगा हुआ पहला वचन

मदीय चित्तानुगतं च चित्तं सदा ममाज्ञापरिपालनं च | 

पतिव्रताधर्म परायणा त्वं कुर्याः सदा सर्वमिमं प्रयत्नम ||  

अर्थात 

मेरी इच्छा में ही आपकी इच्छा निहित होगी और आप हमेशा मेरी आज्ञा का पालन करेंगी। आप हमेशा पतिव्रत धर्म धारण करके रहेंगी।

 

वर का कन्या से माँगा हुआ दूसरा वचन

आदौ धर्म परायणा च सुखदा तथ्यप्रिया भाषिणी | 

क्रिधालस्य विवर्जिता सुखकरी नित्यवचः कारिणी || 

अर्थात 

आप सदैव धर्म परायण रहेंगी। धर्म का आचरण करते हुए आप सदैव सुखद और सच्ची वाणी बोलेंगी। आप कार्यों में आलस्य और खेल की प्रवर्ति से खुद को दूर रखेंगी। (इसका संकेत एक नारी को यह याद दिलाना है कि अब आप माँ के घर क्रीड़ा करने वाली लड़की नहीं हैं बल्कि मेरे साथ गृहस्थ निर्माण कर स्त्री बनने जा रहीं हैं। )   

 

वर का कन्या से माँगा हुआ तीसरा वचन

उद्याने मद्यपस्थाने गमनं | च परालये | 

परपुरषां रतिगीर्तं हास्य वर्ज्यं त्वया सदा || 

अर्थात 

वर कन्या से कहता है कि यदि मैं कभी किसी उद्यान में हूँ या किसी पर पुरुष के संग मद्यपान कर रहा हूँ तब पर पुरुष के सामने आप व्यर्थ हंसी मज़ाक़ नहीं करेंगी। इसका तात्पर्य है कि किसी भी पर पुरुष के सामने आप मर्यादित आचरण करेंगी। 

 

अंत में वर कहता है 

अग्नि नारायणः साक्षी ब्राह्मणः ज्ञाति बान्धवाः | 

पंचम ध्रुवमालोक्य स साक्षित्वमुपागताः || 

अर्थात 

वर कन्या से कहता है कि अग्नि देव , विष्णु देव, ब्राह्मण देवता , सभी आगन्तुक भाई बंधु एवं आकाश में स्थित ध्रुव तारा हमारे विवाह के साक्षी हैं। 

 

देखी आपने वैदिक विवाह की सुंदरता। किसी अदालत के बिना भी इस विवाह में दो लोग सात वचनों से बाध्य होते हैं।  जब वर और कन्या दोनों ही प्रेमपूर्वक इन वचनों को जीवन में निभाते हैं तब गृहस्थ की गाड़ी संतुलित रहती है।  

आशा है कि आपको यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही ब्लॉग को पढ़ते रहिये संस्कारी सुरभि के साथ।